अजमेर में एक महिला लेक्चरर की पेट दर्द के चलते मौत हो गई। पेट दर्द की शिकायत के बाद उसे निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। परिजनों का आरोप है कि आईसीयू में भर्ती करने के बावजूद अस्पताल प्रशासन ने पेट दर्द की जगह बीपी का इलाज कर दिया। सीटी स्कैन के बाद भी पेट की जांच नहीं की गई और सोनोग्राफी के लिए दोगुने पैसे मांगे गए। हालत बिगड़ने पर 26 अप्रैल की शाम को उसे जनाना अस्पताल रेफर कर दिया, जहां ऑपरेशन के दौरान उसकी मौत हो गई।जयपुर के शाहपुरा निवासी विजय ने बताया कि 25 अप्रैल की रात को भाभी अनिता मेहरड़ा (31) पत्नी अजय नरवाड़ा को क्षेत्रपाल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में भर्ती कराया गया था। भाभी ब्यावर के दौलतपुरा स्थित सरकारी स्कूल में भूगोल की लेक्चरर थी।
अब सिलसिलेवार पढ़िए पूरी घटना...
पेट दर्द की जगह बीपी का इलाज कर दिया: महिला के पति अजय ने बताया- अनिता को पेट दर्द होने पर बिजयनगर से अजमेर के क्षेत्रपाल अस्पताल लाया गया था। अस्पताल में पेट दर्द की जगह बीपी का इलाज किया गया। सीटी स्कैन के बाद भी पेट दर्द का इलाज नहीं किया गया। खून की कमी बताकर दो यूनिट खून मंगवा लिया, लेकिन चढ़ा है या नहीं यह नहीं बताया और अंदर भी नहीं जाने दिया।
दोपहर तक नहीं हुई सोनोग्राफी: अजय ने बताया कि सोनोग्राफी टालते रहे और रात में दोगुने पैसे मांगे। हमने कहा कि हम दोगुने नहीं बल्कि तिगुने पैसे देंगे, लेकिन दोपहर तक सोनोग्राफी नहीं हुई। फिर उन्होंने कहा कि दूसरी जगह ले जाओ। अगर पहले बता देते तो इतना समय बर्बाद नहीं होता।
समय पर इलाज मिलता तो बच सकती थी जान: बाद में वे उसे पास के जनाना अस्पताल ले गए, जहां सर्जरी कर उसे बचाने की कोशिश की गई, लेकिन अनीता की मौत हो गई। अजय का आरोप है कि अगर समय पर इलाज मिलता तो उसकी पत्नी की जान बच सकती थी। निजी अस्पताल की लापरवाही के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई है। क्षेत्रपाल अस्पताल की मेडिसिन अधीक्षक एवं न्यूरो फिजिशियन डॉ. मोनिका सचान ने कहा- मरीज पेट दर्द, उल्टी और चक्कर आने की समस्या लेकर आई थी। उसका इमरजेंसी में इलाज किया गया। उसका बीपी लो और खून की कमी पाई गई। उसे आईसीयू में भर्ती कर इलाज किया गया और दो यूनिट खून भी चढ़ाया गया। मरीज की हालत गंभीर थी। सोनोग्राफी में गायनी संबंधी समस्या पाई गई। यहां गायनी विशेषज्ञ न होने के कारण रेफर कर दिया। हमने बेहतरीन इलाज दिया, कोई लापरवाही नहीं बरती। आरोप बेबुनियाद है।
राजस्थान के सरकारी कर्मचारियों के लिए बनाई गई निशुल्क इलाज योजना (आरजीएचएस) में करोड़ों रुपए की धोखाधड़ी सामने आई है। डॉक्टर और मेडिकल स्टोर संचालक मिलकर फर्जी बिल बनाकर उन दवाओं का भुगतान ले रहे थे, जो कभी बिकी ही नहीं।
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