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ट्रंप के टैरिफ़ से भारत को नुक़सान, पर इन देशों का होगा फ़ायदा

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अमेरिका ने भारत से आने वाले कई सामानों पर 50 फ़ीसदी टैरिफ़ यानी आयात शुल्क लगा दिया है.

ट्रंप प्रशासन ने पहले भारत पर 25% टैरिफ़ लगाया था. लेकिन छह अगस्त को रूस से तेल ख़रीदने के कारण 25% अतिरिक्त टैरिफ़ लगाने का एलान किया गया.

अमेरिका के इस फ़ैसले से भारत के क़रीब चार लाख करोड़ रुपए के निर्यात पर असर पड़ेगा.

देश में कई फ़ैक्ट्रियां बंद होने के कगार पर हैं और बड़ी संख्या में लोगों के सामने रोज़गार का संकट खड़ा है.

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हालांकि इसका एक दूसरा पहलू भी है.

भारत को अमेरिका में सामान बेचने में मुश्किल होगी तो कई दूसरे देश इस मौक़े का फ़ायदा उठा सकते हैं.

एशिया, यूरोप और दक्षिणी अमेरिका के कई देश अब अमेरिका को वही सामान बेच सकते हैं, जो पहले भारत बेचता था.

मुख्य सवाल यह है कि अमेरिकी टैरिफ़ लगने के बाद भारत के जिन पांच सबसे बड़े क्षेत्रों पर असर पड़ेगा, उनमें कौन से देशों को लाभ होगा?

1. कपड़े और परिधान image IDREES MOHAMMED/AFP via Getty Images भारत के नुक़सान का फ़ायदा वियतनाम, बांग्लादेश और कंबोडिया जैसे देशों को मिल सकता है

अमेरिकी टैरिफ़ लागू होने के बाद टेक्सटाइल और अपैरल यानी कपड़ा और परिधान सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में हैं, जहां तैयार कपड़ों पर टैरिफ़ क़रीब 64 फ़ीसदी तक पहुंच गया है.

कपड़ा क्षेत्र को मोटे तौर पर सबसे अधिक शुल्कों का सामना करना पड़ रहा है और इस क्षेत्र के क़रीब 90 हज़ार करोड़ रुपए से ज़्यादा के निर्यात पर असर पड़ेगा.

इसका फ़ायदा वियतनाम, बांग्लादेश और कंबोडिया जैसे देशों को मिल सकता है.

वियतनाम पहले से ही अमेरिका को कपड़े निर्यात करने वाला बड़ा देश है. साल 2024 में वियतनाम ने अमेरिका को 15.5 अरब डॉलर मूल्य के कपड़े बेचे.

बांग्लादेश अपने सस्ते फ़ैशन उत्पादों के लिए जाना जाता है. साल 2024 में बांग्लादेश ने अमेरिका को 7.49 अरब डॉलर के कपड़े निर्यात किए. यह निर्यात भारत के अमेरिका को किए गए कपड़ा निर्यात से सिर्फ़ 2.22 अरब डॉलर कम था.

इसलिए भारत को टैरिफ़ की वजह से हो रहे नुकसान का सबसे बड़ा लाभ बांग्लादेश को हो सकता है.

साथ ही मेक्सिको, इंडोनेशिया और कंबोडिया जैसे देश भी इस क्षेत्र में अमेरिका के लिए नए विकल्प बन कर उभर सकते हैं.

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2. गहने और रत्न image PUNIT PARANJPE/AFP via Getty Images चीन सिंथेटिक रत्नों के क्षेत्र में अग्रणी है

बढ़े हुए अमेरिकी टैरिफ़ की वजह से भारत के गहनों और रत्नों के उद्योग को भी बड़ा झटका लग सकता है. अनुमान है कि इस क्षेत्र में भारत का क़रीब 85 हज़ार करोड़ रुपए का निर्यात प्रभावित होगा.

भारत विश्व का सबसे बड़ा कटे हुए हीरों (कट डायमंड्स) का निर्यातक है. सूरत और मुंबई जैसे शहरों में लाखों लोग इस उद्योग से जुड़े हैं.

यह टैरिफ़ भारत की डायमंड इंडस्ट्री को अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में कमज़ोर कर सकता है. लंबे समय तक हीरों की कटिंग और पॉलिशिंग में अग्रणी रहे भारत को अब कई देशों से चुनौती मिल रही है.

ख़ासकर इटली, फ़्रांस, थाईलैंड, तुर्की और चीन ने इस उद्योग में अपनी पकड़ मज़बूत की है.

थाईलैंड रत्नों की कटिंग और डिज़ाइन में माहिर है और भारत पर लगे टैरिफ़ की वजह से अमेरिकी बाज़ार में उसकी हिस्सेदारी बढ़ सकती है.

इसी तरह तुर्की सोने के गहनों का बड़ा निर्यातक है और भारत की जगह ले सकता है. वहीं चीन सिंथेटिक रत्नों के क्षेत्र में अग्रणी है.

3. ऑटो कंपोनेंट्स यानी गाड़ियों के पुर्ज़े image Dhiraj Singh/Bloomberg via Getty Images भारत से अमेरिका को हर साल लगभग 58 हज़ार करोड़ रुपए के ऑटो कंपोनेंट्स निर्यात होते हैं

अमेरिका के भारतीय ऑटो पार्ट्स पर 50 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाने के फ़ैसले से भारत के इस क्षेत्र को भी बड़ा झटका लग सकता है.

भारत से अमेरिका को हर साल क़रीब 58 हज़ार करोड़ रुपए के ऑटो कंपोनेंट्स निर्यात होते हैं. अब इनमें से ज़्यादातर पर भारी शुल्क लगने से निर्यात में गिरावट आ सकती है.

इस स्थिति का फ़ायदा उन देशों को मिल सकता है जिनके साथ अमेरिका के व्यापार समझौते हैं या जिनकी टैरिफ़ दरें भारत की तुलना में काफ़ी कम हैं.

सबसे ज़्यादा फ़ायदा मेक्सिको को हो सकता है, क्योंकि उसे अमेरिका के यूएसएमसीए (यूएस-मेक्सिको-कनाडा समझौते) के तहत शून्य शुल्क का लाभ मिलता है.

मेक्सिको पहले से ही अमेरिका का एक प्रमुख ऑटो पार्ट्स सप्लायर है और उसकी भौगोलिक निकटता का भी उसे फ़ायदा मिलता है.

वियतनाम, थाईलैंड और इंडोनेशिया जैसे दक्षिण-पूर्व एशियाई देश भी इन हालात का लाभ उठा सकते हैं. इन देशों पर अमेरिका की टैरिफ़ दरें 15–20 फ़ीसदी के बीच हैं, जो भारत पर लगाई गई नई दरों से काफ़ी कम हैं.

जर्मनी, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे तकनीकी रूप से उन्नत देश भी अमेरिका को उच्च गुणवत्ता वाले ऑटो पार्ट्स निर्यात करते हैं.

इन देशों की टैरिफ़ दरें भारत की तुलना में कम हैं और उनके पास मज़बूत ओईएम (ओरिजिनल इक्विपमेंट मैन्युफ़ैक्चरर) हैं, जिससे उन्हें अतिरिक्त फ़ायदा मिल सकता है.

हालांकि, चीन पर भी अमेरिका ने बढ़े हुए टैरिफ़ लगाए हैं लेकिन चीन की विशाल उत्पादन क्षमता और सस्ती लागत उसे प्रतिस्पर्धा में बनाए रखती है. अमेरिका को चीन का ऑटो पार्ट्स निर्यात 56.7 अरब डॉलर तक पहुंच चुका है.

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4. झींगा और समुद्री खाद्य पदार्थ image R. SATISH BABU/AFP via Getty Images भारत दुनिया के शीर्ष झींगा निर्यातकों में शामिल है

अमेरिकी टैरिफ़ का गहरा असर समुद्री खाद्य निर्यात, ख़ासकर झींगा (श्रिम्प) पर पड़ने की आशंका जताई जा रही है.

भारत से अमेरिका को भेजे जाने वाले झींगा और दूसरे समुद्री उत्पादों का निर्यात अब लगभग 20 हज़ार करोड़ रुपए तक प्रभावित हो सकता है. भारत दुनिया के शीर्ष झींगा निर्यातकों में शामिल है.

हालांकि, नए टैरिफ़ लगने के बाद अब अमेरिकी बाज़ार में भारत अपनी प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति खो सकता है.

यह क्षेत्र ख़ास तौर पर आंध्र प्रदेश, ओडिशा और तमिलनाडु जैसे पूर्वी तटीय राज्यों में लाखों लोगों को रोज़गार देता है. भारत के नुक़सान का फ़ायदा इक्वाडोर, वियतनाम और इंडोनेशिया जैसे देशों को मिल सकता है.

इक्वाडोर दुनिया के सबसे बड़े झींगा निर्यातकों में से एक है, जो पहले से ही अमेरिका को बड़े पैमाने पर सप्लाई करता है.

वियतनाम की प्रोसेसिंग तकनीक और लॉजिस्टिक्स मज़बूत हैं और वह अमेरिका को समुद्री उत्पादों का एक प्रमुख सप्लायर है. वहीं इंडोनेशिया झींगा के साथ-साथ ट्यूना मछली के निर्यात में भी अग्रणी है और अमेरिकी मांग को पूरा करने की क्षमता रखता है.

5. केमिकल्स और ऑर्गेनिक कंपाउंड्स

अमेरिकी टैरिफ़ से इस क्षेत्र में भारत के क़रीब 23 हज़ार करोड़ रुपए के निर्यात पर सीधा असर पड़ने की आशंका है. इस क्षेत्र में भारत की एक बड़ी हिस्सेदारी सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) की है, जो कुल निर्यात में क़रीब 40 फ़ीसदी का योगदान करते हैं.

बढ़ी हुई टैरिफ़ की वजह से अमेरिकी बाज़ार में भारतीय उत्पाद महंगे हो जाएंगे, जिससे उनकी प्रतिस्पर्धा घटेगी और ऑर्डर कम हो सकते हैं.

हर्बीसाइड्स, फ़ंगीसाइड्स, ऑर्गेनिक फ़र्टिलाइज़र्स और हाइपोक्लोराइट जैसे उत्पादों की मांग में गिरावट आने की संभावना है. इन उत्पादों की कीमतें बढ़ने से अमेरिकी ख़रीदार वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं की ओर रुख़ कर सकते हैं.

भारत की जगह अब कई देश अमेरिका को रसायन और ऑर्गेनिक कंपाउंड्स सप्लाई कर सकते हैं. जापान और दक्षिण कोरिया को अमेरिका में कम टैरिफ़ देना पड़ता है, इसलिए उनके उत्पाद सस्ते रहेंगे और भारत की जगह ले सकते हैं.

चीन पर भले ही कुछ टैरिफ़ हैं लेकिन उसकी फ़ैक्ट्रियां बड़ी हैं और वह सस्ते दामों पर सामान बना सकता है, इसलिए वह भी भारत की जगह ले सकता है.

थाईलैंड, वियतनाम और बांग्लादेश जैसे देश भी कुछ ख़ास रसायनों और उत्पादों में अमेरिका को सस्ते विकल्प दे सकते हैं. इसी तरह यूरोपीय संघ और कनाडा उच्च गुणवत्ता वाले रसायन बनाते हैं और अमेरिका इनसे ज़्यादा ख़रीदारी कर सकता है.

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अमेरिकी टैरिफ़ का भारत पर असर image BBC/Getty Images

प्रोफ़ेसर बिस्वजीत धर एक जाने-माने अर्थशास्त्री हैं. उनका कहना है कि भारत के लिए नए बाज़ार खोजना अब ज़रूरी हो गया है.

वे कहते हैं, "अमेरिका पर निर्भर रहना समस्याओं से भरा हुआ है. हमने इसका उदाहरण चीन से देखा है. चीन को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल में झटका लगा था, लेकिन उसके बाद उसने अमेरिका से धीरे-धीरे दूरी बनानी शुरू कर दी. चीन ने अपने 8-9 प्रतिशत निर्यात अमेरिका से हटा लिए हैं. पहले 2017-18 में यह 18-19 फ़ीसदी था और अब यह 12 फ़ीसदी से भी कम हो गया है. इससे साफ़ है कि चीन अब ज़्यादा स्थिर स्थिति में है और इस तरह की घटनाओं से कम प्रभावित होता है."

मोहन कुमार फ्रांस में भारत के राजदूत रह चुके हैं और अंतरराष्ट्रीय व्यापार और बहुपक्षीय वार्ता के क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं.

वे कहते हैं कि अमेरिकी टैरिफ़ लागू होने के बाद हालात फ़िलहाल नुक़सानदायक हैं, लेकिन लंबे समय में बाज़ार की ताक़तें काम करेंगी और स्थिति सुधरेगी.

मोहन कुमार कहते हैं, "हम अपने बाज़ारों में विविधता लाएंगे, घरेलू मांग किसी न किसी वजह से बढ़ेगी और हम वैकल्पिक बाज़ारों की ओर देखेंगे. इसलिए बाद में क्या होगा इसकी चिंता नहीं है. चिंता की बात है जो अभी हो रहा है. 25 फ़ीसदी टैरिफ़ के साथ हम काम चला सकते थे, लेकिन 50 फ़ीसदी टैरिफ़ से ज़्यादा नुक़सान होगा."

वहीं प्रोफ़ेसर धर का मानना है कि अमेरिका की व्यापार नीति अस्थिर बनी रहेगी, चाहे ट्रंप सत्ता में रहें या नहीं.

वे कहते हैं, "उन्होंने एक ऐसा माहौल बना दिया है जो अस्थिरता पैदा करता है. भारत जैसे बड़े देश के लिए अपने कुल निर्यात का एक चौथाई सिर्फ़ एक देश पर निर्भर रखना सही नहीं है. हमें नए बाज़ार खोजने होंगे, विकासशील देशों से अपने संबंध मज़बूत करने होंगे. यही संबंध लंबे समय तक टिकाऊ होंगे और भारतीय निर्यात को स्थिर रास्ता देंगे."

नये समझौतों पर नज़र? image BBC/Getty Images

तो क्या भारत को अमेरिका से ध्यान हटाकर एशिया, अफ़्रीका या यूरोप जैसे अन्य बाज़ारों की ओर देखना चाहिए?

मोहन कुमार कहते हैं, "आप भारत पर यह आरोप नहीं लगा सकते कि उसने सारी उम्मीदें एक ही विकल्प पर टिका रखी हैं. बस इतना है कि अमेरिका का बाज़ार कुछ चीज़ों के लिए सबसे आकर्षक था, जैसे झींगे, रत्न, आभूषण और कपड़े. यह कोई बड़ा बदलाव नहीं होगा, लेकिन जैसे यूरोपीय संघ के साथ मुक्त व्यापार समझौते की बातचीत है, उसमें भारत की तरफ़ से अब गति आएगी. भारत उस समझौते को पूरा करने के लिए अब ज़्यादा तत्पर होगा."

अपनी बात जारी रखते हुए वे कहते हैं, "हमने पहले ही यूके के साथ एफ़टीए (फ़्री ट्रेड एग्रीमेंट) पूरा कर लिया है. शायद हम अन्य बाज़ारों की ओर भी देखेंगे और किसी समय हमें क्षेत्रीय मुक्त व्यापार समझौतों में शामिल होने पर भी विचार करना पड़ेगा."

मोहन कुमार को लगता है कि टैरिफ़ का ये दौर ज़्यादा समय तक शायद न चले क्योंकि दोनों पक्ष बातचीत कर रहे हैं.

प्रोफ़ेसर धर भी कहते हैं कि भारत को नए बाज़ार खोजने पड़ेंगे. उनके मुताबिक अब भारत को यूरोप के अलावा अफ़्रीका और मध्य एशिया के देशों की ओर भी देखना चाहिए.

रूसी तेल: भारत को फिर सोचने की ज़रूरत? image BBC/Getty Images

अमेरिका के मुताबिक भारत पर अतिरिक्त 25 फ़ीसदी टैरिफ़ इसलिए लगाया गया है क्योंकि भारत रूस से लगातार तेल खरीद रहा है.

तो क्या टैरिफ़ की मार से बचने के लिए भारत को रूस से तेल खरीदने पर भी दोबारा सोचना होगा?

प्रोफ़ेसर बिस्वजीत धर कहते हैं, "जब तक भारत को सस्ता तेल मिल रहा है, तब तक बदलाव की ज़रूरत नहीं है. जब हमने रूस से तेल लेना शुरू किया था तब बाक़ी देश महंगाई से जूझ रहे थे और उनकी कोविड के बाद की रिकवरी प्रभावित हुई थी. भारत उन कुछ देशों में था जो इस समस्या से बच गए. अब जब हम उम्मीद कर रहे हैं कि हमारी अर्थव्यवस्था 6 से 6.5 फ़ीसदी की दर से बढ़े तो हम महंगाई को आयात नहीं कर सकते. ओपेक देशों का तेल रूस की तुलना में महंगा होगा."

मोहन कुमार का कहना है कि भारत सिर्फ़ रूस से ही तेल खरीदने पर अड़ा नहीं है. वे कहते हैं कि भारत का का रुख़ यह है कि हम वहां से तेल खरीदेंगे जहां कीमत सबसे कम हो या शर्तें सबसे अनुकूल हों.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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