संयुक्त राष्ट्र के एक जांच आयोग ने कहा है कि इसराइल ग़ज़ा में फ़लस्तीनियों के ख़िलाफ़ जनसंहार कर रहा है.
एक नई रिपोर्ट बताती है कि साल 2023 में हमास के साथ जंग शुरू होने के बाद से अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत पांच में से चार ऐसी जनसंहार की हरकतें हैं जो इसका निष्कर्ष निकालने के लिए उचित आधार हैं.
इनमें समूह में लोगों को मारना, उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से गंभीर नुक़सान पहुंचाना, समूह को तबाह करने के लिए जानबूझकर हालात पैदा करना और जन्मों को रोकना शामिल है.
इस रिपोर्ट में इसराइली नेताओं के बयानों और इसराइली सुरक्षाबलों की कार्रवाई के तरीक़े को जनसंहार के इरादे के सुबूतों के तौर पर देखा गया है.
इसराइल के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि वह इस रिपोर्ट को सिरे से ख़ारिज करता है और उसने इसे "भ्रामक और झूठा बताया है."
ग़ज़ा में जंग की शुरुआत से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस पर बहस शुरू हुई है कि इसराइल जनसंहार कर रहा है. जनसंहार जिसे अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत सबसे गंभीर अपराध माना जाता है.
हमास के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक़, सितंबर के मध्य तक ग़ज़ा में इसराइल की सेना के अभियानों में तक़रीबन 65,000 लोगों की मौत हुई है जिनमें से अधिकतर आम नागरिक हैं.
7 अक्तूबर 2023 को हमास के हमले के बाद इसराइल ने यह अभियान शुरू किया था. हमास के हमले में 1,200 लोगों की मौत हुई थी और 251 को बंधक बनाकर ग़ज़ा में ले जाया गया था, इनमें अधिकतर आम नागरिक थे.
इन मौतों और तबाही की बड़े पैमाने पर निंदा हुई. तुर्की और ब्राज़ील समेत कई देशों और मानवाधिकार समूहों और संयुक्त राष्ट्र के नियुक्त कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि इसराइल ग़ज़ा में जनसंहार कर रहा है.
दिसंबर 2023 में दक्षिण अफ़्रीका इसराइल के ख़िलाफ़ 1948 के जनसंहार कन्वेंशन के उल्लंघन का मामला अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) में लेकर गया.
एक महीने बाद एक अंतरिम आदेश में बताया गया कि फ़लस्तीनियों को "जनसंहार से सुरक्षा का उचित अधिकार" मिला हुआ है. जजों ने कहा था कि दक्षिण अफ़्रीका ने जिन कुछ हरकतों को लेकर शिकायत की है अगर वे साबित हुईं तो ये कन्वेंशन के तहत आ सकता है.
ब्रिटेन और जर्मनी समेत पश्चिमी सरकारों ने इसराइल की कार्रवाइयों को बड़े पैमाने पर जनसंहार कहने से परहेज़ किया है. फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा था कि इस शब्द का इस्तेमाल करना किसी राजनेता के अधिकार में नहीं हैं लेकिन 'इतिहासकारों' को 'उचित समय' पर इसका फ़ैसला करना चाहिए.
इसराइल जनसंहार के आरोपों को "स्पष्ट झूठ" बताते हुए इसे कड़े शब्दों में ख़ारिज कर चुका है. उसका कहना है कि वह अपनी सुरक्षा और आत्मरक्षा के अधिकार का इस्तेमाल कर रहा है. इस दलील को उसके सबसे ताक़तवर सहयोगी अमेरिका ने भी दोहराया है.
सवाल ये उठता है कि जनसंहार का मतलब क्या होता है और किसी घटना के लिए इस शब्द को तय करने का अधिकार किसके पास है?
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इस शब्द को साल 1943 में यहूदी-पॉलिश वकील राफ़ाएल लेम्किन ने गढ़ा था. उन्होंने ग्रीक शब्द "genos" (जाति या समुदाय) और लैटिन शब्द "cide" (मारना) को मिलाकर इसे बनाया था.
लेम्किन भयानक होलोकॉस्ट के गवाह थे, इसमें उनके भाई को छोड़कर परिवार के सभी सदस्य मारे गए थे. उन्होंने जनसंहार को अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत अपराध के तौर पर मान्यता दिलाने के लिए अभियान चलाया.
उनकी कोशिशों के नतीजे में दिसंबर 1948 में संयुक्त राष्ट्र जनसंहार कन्वेंशन को अपनाया गया, जो जनवरी 1951 में लागू हुआ. 2022 तक इस पर 153 देशों ने हस्ताक्षर किए थे.
कन्वेंशन के आर्टिकल दो में जनसंहार को कुछ इस तरह से परिभाषित किया गया है: "ऐसा कोई भी कृत्य जो किसी राष्ट्रीय, जातीय, नस्लीय या धार्मिक समूह को, आंशिक या पूर्ण रूप से, नष्ट करने के इरादे से किया जाए." इसमें ये भी शामिल हैं:
• समूह के सदस्यों की हत्या करना
• समूह के सदस्यों को गंभीर शारीरिक या मानसिक नुक़सान पहुंचाना
• ऐसे हालात समूह के लिए पैदा करना जिनसे उसका आंशिक या पूर्ण शारीरिक विनाश हो
• जन्म रोकने के लिए काम करना
• बच्चों को ज़बरदस्ती किसी दूसरे समूह में ट्रांसफ़र करना
यह कन्वेंशन इस पर हस्ताक्षर करने वाले राष्ट्रों को जनसंहार को 'रोकने और सज़ा देने के लिए' उन पर ज़िम्मेदारी भी डालता है.
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संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि वह यह निर्धारित नहीं करता कि कोई हालात जनसंहार हैं या नहीं. यह अधिकार केवल अधिकृत न्यायिक संस्थाओं, जैसे कि अंतरराष्ट्रीय अदालतों को दिया गया है.
अब तक अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत केवल कुछ ही मामलों को जनसंहार क़रार दिया गया है: जैसे 1994 में रवांडा का जनसंहार, 1995 में बोस्निया के स्रेब्रेनिका में हुआ जनसंहार और 1975 से 1979 तक कंबोडिया में खमेर रूज का अल्पसंख्यक समूहों के ख़िलाफ़ अभियान.
अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) और अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आईसीसी) सबसे प्रमुख अंतरराष्ट्रीय न्यायालय हैं जिन्हें जनसंहार पर फ़ैसला देने का अधिकार है. इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र ने रवांडा और पूर्व यूगोस्लाविया में जनसंहार से जुड़े मामलों के लिए विशेष ट्रिब्यूनल भी बनाए थे.
आईसीजे संयुक्त राष्ट्र की सर्वोच्च न्यायिक संस्था है जो देशों के बीच विवादों को सुलझाने का काम करती है. अभी जनसंहार से जुड़े कुछ मामले चल रहे हैं, जिनमें एक मामला साल 2022 में यूक्रेन रूस के ख़िलाफ़ लेकर गया था. यूक्रेन ने आरोप लगाया कि रूस ने पूर्वी डोनबास क्षेत्र में झूठा जनसंहार का दावा किया और इसे हमले के बहाने के रूप में इस्तेमाल किया.
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दूसरा उदाहरण गाम्बिया के केस का है जो उसने साल 2017 में म्यांमार के ख़िलाफ़ दायर किया था. इसमें आरोप लगाया गया था कि बहुसंख्यक बौद्ध देश ने मुस्लिम रोहिंग्या अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ उनके गांवों में "व्यापक और सुनियोजित सफ़ाई अभियान" चलाकर जनसंहार किया है.
आईसीसी की स्थापना साल 2002 में हुई थी और इसका काम व्यक्तियों पर मुक़दमा चलाना है. सिर्फ़ 125 देशों ने ही इस संधि पर हस्ताक्षर किए और वे इसके सदस्य हैं. अमेरिका, चीन और भारत इसमें शामिल नहीं हैं.
आईसीसी ने कथित जनसंहार के मामलों की जांच की है, लेकिन अब तक सिर्फ़ एक मामले में आरोप पत्र दायर किया गया है. यह मामला सूडान के पूर्व राष्ट्रपति उमर हसन अहमद अल बशीर का है, साल 2019 में क़रीब तीन दशकों तक सत्ता में रहने के बाद उनका तख़्तापलट कर दिया गया था. वह अब भी फ़रार हैं.
वहीं कई देशों की संसद और सरकारें "जनसंहार" शब्द का इस्तेमाल कर सकती हैं, लेकिन संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि ऐसे लेबल का क़ानूनी महत्व उन देशों की सीमाओं से बाहर लागू नहीं होता.
उदाहरण के तौर पर कई सरकारों और संसदों ने होलोडोमोर को जनसंहार माना है. 1932-33 में सोवियत संघ के नेता जोसेफ़ स्टालिन की सामूहीकरण की नीतियों की वजह से लाखों लोग यूक्रेन में भुखमरी का शिकार हुए थे.
हालांकि, ब्रिटेन ने इसे जनसंहार नहीं माना क्योंकि उसकी पुरानी नीति है कि केवल सक्षम अदालतों के फ़ैसलों के बाद ही जनसंहार को मान्यता दी जाती है.
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इसके अपनाए जाने के बाद से संयुक्त राष्ट्र की इस संधि की कई बार आलोचना हुई है. ख़ासकर उन लोगों ने इसकी आलोचना की जो इसे ख़ास मामलों में लागू करने की मुश्किलों से निराश रहे. कुछ का कहना है कि इसकी परिभाषा बहुत सीमित है, जबकि कुछ का मानना है कि इसके बहुत ज़्यादा इस्तेमाल करने से इसका महत्व कम हो गया है.
आईसीसी के साथ काम कर चुके एक जनसंहार विशेषज्ञ थाइस बोकनेट ने समाचार एजेंसी एएफ़पी से इंटरव्यू में कहा, "जनसंहार का मानक पूरा करना लगभग असंभव है."
उन्होंने कहा, "आपको यह साबित करना होगा कि इरादा क्या था, और जो कुछ होता है उसके लिए इरादा ही एकमात्र संभावित स्पष्टीकरण होता है."
वहीं इसकी होने वाली कुछ आलोचनाओं में राजनीतिक और सामाजिक समूहों को परिभाषा से बाहर रखना भी शामिल है. साथ ही कितनी मौतों को जनसंहार माना जाएगा यह भी तय नहीं है.
बोकनेट कहते हैं कि जनसंहार कब हुआ इस पर कोर्ट को फै़सला देने में सालों लग सकते हैं.
रवांडा के मामले में संयुक्त राष्ट्र के ट्रिब्यूनल को तक़रीबन एक दशक आधिकारिक तौर पर यह घोषित करने में लग गया कि जनसंहार हुआ था.
वहीं साल 2007 तक आईसीजे ने यह नहीं माना था कि 1995 में स्रेबेनिका हत्याकांड में तक़रीबन 8,000 मुस्लिम पुरुष और लड़कों के मारे जाने का मामला जनसंहार था.
यॉर्क यूनिवर्सिटी में क्रिमिनोलॉजिस्ट रैचेल बर्न्स कहती हैं कि बहुत कम अपराधियों को उनके अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया.
"रवांडा, पूर्व यूगोस्लाविया और कंबोडिया में अपराधियों की वास्तविक संख्या अज्ञात है, लेकिन केवल कुछ को ही दोषी ठहराया गया."
विशेषज्ञों का कहना है कि एक बार जब किसी हालात को क़ानूनी रूप से जनसंहार घोषित कर दिया जाता है, तो संधि पर हस्ताक्षर करने वाले देशों को उसे रोकने या ख़त्म करने के कदम उठाने होते हैं, चाहे वह कूटनीति, आर्थिक प्रतिबंध या फिर सैन्य हस्तक्षेप के ज़रिए हो.
उदाहरण के लिए रवांडा जनसंहार के दौरान अमेरिकी गोपनीय दस्तावेज़ों से पता चला कि अधिकारियों ने जानबूझकर "जनसंहार" शब्द का इस्तेमाल करने से परहेज़ किया, जबकि हत्याएं जारी थीं. इसका एक कारण यह था कि वे संधि के तहत क़ानूनी और राजनीतिक ज़िम्मेदारियों से बचना चाहते थे.
बर्न्स कहती हैं, "संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा के बावजूद, अब भी परिभाषा तय करने में नाकामी है. साथ ही कार्रवाई करने और केस चलाने में भी नाकामी मिली है."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
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