परमाणु कार्यक्रम पर अंतरराष्ट्रीय समझौते के बाद ईरान पर लगे प्रतिबंध हटाए गए थे, लेकिन अब 10 साल बाद उस पर एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र के व्यापक आर्थिक और सैन्य प्रतिबंध लागू कर दिए गए हैं.
समझौते को आगे बढ़ाने से जुड़ी बातचीत के विफल होने के बाद समझौते में शामिल तीन यूरोपीय देशों- ब्रिटेन, फ़्रांस और जर्मनी ने तथाकथित "स्नैपबैक" मैकेनिज़्म को सक्रिय किया है. उन्होंने ईरान पर "लगातार परमाणु उकसावे" और सहयोग नहीं करने का आरोप लगाया है.
2015 में हुए समझौते के तहत परमाणु ठिकानों का निरीक्षण होने देना ईरान की क़ानूनी बाध्यता थी. लेकिन इस साल जून में इसराइल और अमेरिका के उसके परमाणु ठिकानों को निशाना बनाए जाने के बाद ईरान ने निरीक्षण से इनकार कर दिया था.
ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेज़ेश्कियान ने फिर से लगाए गए यूएन प्रतिबंधों को "बेबुनियाद, अनुचित, अन्यायपूर्ण और अवैध" बताया है.
पिछले सप्ताह संयुक्त राष्ट्र महासभा में ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेज़ेश्कियान ने ज़ोर देकर कहा था कि परमाणु हथियार विकसित करने का ईरान का कोई इरादा नहीं है.
अमेरिकी विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी बयान के अनुसार ये प्रतिबंध 27 सितंबर 2025 की शाम 8 बजे (ईस्टर्न डेलाइट टाइम) को लागू हो गए हैं.
समाचार एजेंसी आईआरएनए के अनुसार प्रतिबंधों के लागू होने के फ़ैसले के बाद ईरान ने फ़्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन से अपने राजदूतों को वापिस बुला लिया है. वहीं इन तीनों देशों के राजदूतों को निष्कासित कर दिया है.
ईरानी संसद की राष्ट्रीय सुरक्षा कमिटी के प्रवक्ता इब्राहिम रेज़ाई ने कहा कि "ये सबसे मामूली कदम है जो हम उठा सकते हैं. सालों से हम सामान्य तरीके से अपना तेल नहीं बेच पाए हैं, ये स्नैपबैक कोई नई बात नहीं है."
प्रतिबंधों पर ईरान की प्रतिक्रियाईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराग़ची ने यूएन महासचिव को एक पत्र में लिखा कि वो "न्यायपूर्ण, संतुलित और स्थायी समाधान की दिशा में कूटनीतिक प्रयासों के लिए तैयार हैं."
उन्होंने लिखा कि "दुर्भाग्य से, ई3 और अमेरिका ने टकराव का रास्ता चुना है. उन्हें गलतफ़हमी है कि ईरान दबाव के सामने झुक जाएगा. इतिहास ने इस धारणा को असत्य साबित किया है, और भविष्य में भी ऐसा ही होगा."
उन्होंने लिखा कि कुछ पश्चिमी देश क़ानून से बाहर काम कर रहे हैं और अपनी संकीर्ण राजनीतिक एजेंडों से प्रेरित हैं. यूएन ये सुनिश्चित करे कि देश इसका दुरुपयोग ईरान के ख़िलाफ़ राजनीतिक दबाव के लिए न करें.
उन्होंने अपने पत्र में लिखा, "इस तरह का दुरुपयोग संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता और तटस्थता को कमज़ोर करेगा और सुरक्षा परिषद की अथॉरिटी को कम करेगा."
वहीं ईरान की सरकारी न्यूज़ एजेंसी आईआरएनए के अनुसार विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा कि ईरान अपने राष्ट्रीय अधिकारों और हितों की रक्षा करेगा और अपने लोगों के अधिकारों या हितों को नुक़सान पहुंचाने वाले किसी भी कदम का उचित और निर्णायक जवाब देगा.
ईरान की संसद के अध्यक्ष मोहम्मद-बाग़ेर ग़ालिबॉफ़ ने कहा है कि संसद में इस मुद्दे पर चर्चा हुई और अहम फ़ैसले लिए गए. उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य रूस और चीन दोनों ने सार्वजनिक रूप से ईरान पर प्रतिबंधों की बहाली की निंदा की है और कहा है कि कोई भी देश इनका पालन करने के लिए बाध्य नहीं है.
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यूरोपीय यूनियन ने 10 साल पहले ईरान से कच्चे तेल, पेट्रोलियम उत्पादों और पेट्रोकेमिकल्स के आयात, बिक्री या ट्रांसपोर्ट पर पाबंदी लगाई थी. पाबंदियों के फिर से लागू होने का मतलब है कि ये फिर से प्रतिबंधों के दायरे में आ जाएंगी.
इसके तहत ईरान की विदेशों में जमा संपत्तियां जब्त हो जाएंगी. उसके साथ हथियारों की खरीद-फ़रोख़्त बंद हो जाएगी और बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम पर रोक लग जाएगी. साथ ही, यूरेनियम और उससे जुड़ा कोई भी सामान खरीदने या बेचने पर भी प्रतिबंध होगी.
ईरान की मुद्रा रियाल पहले ही काफी नीचे जा चुकी है. वहां खाने-पीने की चीजें आम लोगों की पहुंच से बाहर होती जा रही हैं.
समाचार एजेंसियों के मुताबिक़ पिछले एक साल में चावल 80 से 100 प्रतिशत महंगा हुआ है, राजमा तीन गुना, मक्खन लगभग दोगुना और चिकन की कीमत तकरीबन 25 फ़ीसदी बढ़ चुकी है.
क्या कहते हैं जानकार?अंतरराष्ट्रीय मामलों की जानकार और दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान विभाग में प्रोफ़ेसर रेशमी काज़ी कहती हैं कि ये प्रतिबंध ईरान के लिए नए नहीं हैं.
वो कहती हैं, "ईरान पहले ही मुश्किलों से गुज़र रहा है चाहे वो आर्थिक स्तर पर हो या फिर सैन्य स्तर पर. उसके लिए इससे कुछ अधिक नहीं बदलेगा. उसने परमाणु अप्रसार संधि में रहने या इससे बाहर जाने को लेकर अब तक कुछ स्पष्ट नहीं किया. लेकिन उसने एक तरह से ये संकेत दे दिए हैं कि वो झुकेगा नहीं."
रेशमी काज़ी कहती हैं, "कूटनीति के लिहाज़ से ये अमेरिका और यूरोप के लिए धक्का है क्योंकि अब यूरोप के पास विकल्प सीमित हो गए हैं."
इसराइल और ग़ज़ा युद्ध के बीच अमेरिका ने इस साल जून में अचानक ईरान के अहम परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया था. इसके बाद ट्रंप ने दावा किया कि हमलों से ईरान के परमाणु कार्यक्रम को "भीषण नुक़सान" हुआ.

अमेरिका का कहना था कि हमलों का उद्देश्य उसके परमाणु कार्यक्रम को पीछे धकेलना और इसराइल पर हमले करने वाले उसके क्षेत्रीय प्रॉक्सीज़ को हथियार मुहैया कराने के लिए उसे सज़ा देना था.
इसके बाद ईरान ने कहा कि इन हमलों ने "स्थिति को पूरी तरह बदल दिया है" और परमाणु डील के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन को "अप्रासंगिक" बना दिया.
प्रोफ़ेसर रेशमी काज़ी कहती हैं, "आप देखिए तो अमेरिका के दावे पर विशेषज्ञों ने संदेह जताया था कि इससे वाकई ईरान के परमाणु कार्यक्रम को बहुत नुक़सान हुआ है. लेकिन ये बात स्पष्ट है कि कूटनीति के ज़रिए ईरान से बातचीत हो सकती थी और किसी नतीजे तक पहुंचा जा सकता था. ये विकल्प अब काफी हद तक सीमित हो गया है."
वो इसराइल को एक बड़ा फैक्टर बताती हैं.
वो कहती हैं कि "इसराइल मध्य पूर्व में प्रॉक्सीज़ के लिए ईरान पर आरोप लगाता रहा है. ईरान पर फिर से प्रतिबंध लगने के बाद अगर इसराइल उसके ख़िलाफ़ कोई कदम उठाता है तो इससे स्थिति बिगड़ सकती है. हालांकि वो अमेरिका की मदद के बिना ऐसा कुछ करेगा, इसमें संदेह है. ईरान के लिए ये बड़ी चिंता है."
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अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने सोशल मीडिया पर लिखा कि अमेरिका फ़्रांस, जर्मनी और यूके के फ़ैसले की सराहना करता है.
विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी बयान में लिखा गया है कि राष्ट्रपति ट्रंप ने स्पष्ट किया है कि कूटनीति अभी भी एक विकल्प है और ईरान और दुनिया के लिए एक समझौता ही सबसे अच्छा रास्ता है.
बयान के अनुसार फिर से प्रतिबंध लागू करने का फ़ैसला दिखाता है कि दुनिया धमकियों और आधे-अधूरे उपायों को स्वीकार नहीं करेगी और ईरान को स्पष्ट तरीके से सीधी बातचीत स्वीकार करनी होगी.
संयुक्त राष्ट्र के छह प्रस्तावों को फिर से सक्रिय कर दिया गया है, जो ईरान के परमाणु संवर्धन पर प्रतिबंध लगाते हैं और ईरान के परमाणु एवं बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रमों तथा हथियारों के व्यापार पर प्रतिबंध बहाल करते हैं.
रूस ने ईरान पर फिर से लगाए गए प्रतिबंधों पर आपत्ति जताई है.
रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने संयुक्त राष्ट्र में संवाददाताओं से कहा, "यह गै़रक़ानूनी है और इसे लागू नहीं किया जा सकता."
उन्होंने कहा कि उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस को पत्र लिखकर कहा है कि ईरान पर प्रतिबंधों की वापसी को स्वीकार करना "एक बड़ी गलती" होगी.
चीन के प्रतिनिधि ने संयुक्त राष्ट्र में कहा कि ईरान का परमाणु मुद्दा आज एक "एक अहम मोड़" पर खड़ा है.
उन्होंने कहा, "ई3 ऐसे वक्त स्नैपबैक मैकेनिज़्म सक्रिय करने की बात कर रहा है जब ईरान कह चुका है कि प्रतिबंध बहाल किए गए तो वह जवाबी कदम उठाएगा."
ईरान से समझौते में अमेरिका, यूरोपज्वायंट कॉम्प्रिहेन्सिव प्लान ऑफ़ एक्शन, 2015 (जेसीपीओए) को लंबे समय से अलग-थलग पड़े ईरान और पश्चिमी मुल्कों के रिश्तों में एक "अहम बदलाव" के रूप में देखा गया था.
जेसीपीओए में चीन, फ़्रांस, जर्मनी, रूस, यूके और अमेरिका शामिल थे. साथ ही इसमें विदेश और सुरक्षा नीति मामलों के यूरोपीय संघ के प्रतिनिधि भी शामिल थे. इनमें से फ़्रांस, जर्मनी और यूके को ई3 कहा जाता है.
इसके तहत ईरान के परमाणु ठिकानों, संवर्धित यूरेनियम के भंडारों और उसके रिसर्च की सीमा तय की गई है. इसमें ऊर्जा के लिए परमाणु ढांचा विकसित करने की अनुमति दी गई है, लेकिन शर्त ये है कि वो परमाणु हथियार न बनाए.
2016 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में अमेरिका को जेसीपीओए से बाहर कर लिया था. इसके बाद ईरान ने परमाणु संवर्धन की गतिविधियां बढ़ा दी थीं.
अपने पूर्ववर्ती बराक ओबामा के कार्यकाल में हुए इस समझौते की ट्रंप ने लगातार आलोचना की है. उनका कहना है कि शर्तें बेहतर होनी चाहिए थीं.
हालांकि जेसीपीओए में शामिल यूरोपीय सहयोगी अब भी इसका हिस्सा हैं. वो उम्मीद जता रहे हैं कि बातचीत से तनाव कम हो सकता है.
साझा बयान में उन्होंने कहा, "हम ईरान से अपील करते हैं कि किसी भी उकसावे से बचे. यूएन प्रतिबंधों को फिर से लागू करना कूटनीति का अंत नहीं है."
संयुक्त राष्ट्र महासभा के इतर इस हफ्ते की शुरुआत में ई3 देशों और ईरान के बीच प्रतिबंधों को टालने की संभावना को लेकर बातचीत हुई, जो बेनतीजा रही.
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ई3 देशों के विदेश मंत्रियों ने कहा कि उनके पास स्नैपबैक मेकेनिज़्म शुरू करने के सिवाय "कोई और विकल्प नहीं" था क्योंकि ईरान ने बार-बार वादों का उल्लंघन किया.
उन्होंने कहा, "हमारी चिंताओं को दूर करने या समझौते को आगे बढ़ाने पर हमारी मांगों को पूरा करने के लिए ईरान ने ज़रूरी कदम नहीं उठाए, जबकि लंबी बातचीत हुई थी."
ई3 का कहना था कि ईरान संयुक्त राष्ट्र परमाणु निगरानी एजेंसी (आईएईए) से सहयोग नहीं कर रहा. वो न तो निरीक्षकों को अपने परमाणु ठिकानों तक पहुंचने की अनुमति दे रहा है और न ही संवर्धित यूरेनियम का ब्योरा दे रहा है.
इससे पहले परमाणु अप्रसार संधि से ईरान के बाहर निकलने को लेकर पेज़ेश्कियान ने अपना रुख़ नरम किया था. हालांकि उन्होंने कहा था कि प्रतिबंध फिर से लगाए गए तो बातचीत ख़तरे में पड़ सकती है.
शुक्रवार को उन्होंने कहा था कि ईरान अपने परमाणु संवर्धन को तभी सामान्य करेगा जब उसे आश्वासन मिलेगा कि इसराइल उसके परमाणु ठिकानों पर हमला नहीं करेगा.
लेकिन पश्चिमी देश और आईएईए ईरान के इस दावे से संतुष्ट नहीं हैं कि उसका परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है.
प्रोफ़ेसर रेशमी काज़ी कहती हैं कि अच्छा होगा परमाणु कार्यक्रम को लेकर फिर से बातचीत हो सके.
वो कहती हैं कि ये ईरान के लिए तो बेहतर होगा ही, अमेरिका और यूरोप के भी हित में होगा.
हालांकि प्रोफ़ेसर रेशमी काज़ी कहती हैं कि दोबारा बातचीत शुरू न हो सकी तो इससे ईरान के लिए भी जोखिम हैं.
वो समझाती हैं, "अगर ईरान आईएईए के साथ सहयोग पूरी तरह बंद करने का फ़ैसला कर ले और परमाणु अप्रसार संधि से बाहर चला जाए तो उसके लिए भी समस्या है. उसे एक अड़ियल राष्ट्र की तरह देखा जाएगा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसकी छवि पर असर पड़ेगा."
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