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मुर्शिदाबाद की हिंसा के लिए बांग्लादेश और बीएसएफ़ पर निशाना क्यों साध रही हैं ममता?

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Kaushik Adhikari पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने मुर्शिदाबाद की हिंसा के लिए बीएसएफ़ को भी ज़िम्मेदार बताया है

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बीते सप्ताह वक़्फ़ संशोधन क़ानून के विरोध के दौरान मुर्शिदाबाद ज़िले में हुई सांप्रदायिक हिंसा और आगजनी की घटनाओं में बांग्लादेशी अपराधियों का हाथ होने का आरोप लगाया है. इसके साथ ही उन्होंने इसके लिए सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ़) और बीजेपी को भी ज़िम्मेदार ठहराया है.

ममता ने बुधवार को कोलकाता के नेताजी इंडोर स्टेडियम में मुस्लिम धर्मगुरुओं के साथ आयोजित एक बैठक में यह आरोप लगाया है. यह बैठक तो हिंसा शुरू होने के पहले से ही तय थी.

लेकिन, इसके बावजूद अनुमान लगाया जा रहा था कि मुर्शिदाबाद में वक़्फ़ क़ानून के विरोध में प्रदर्शन के पहले हिंसक होने और बीते शनिवार को इसके सांप्रदायिक रूप लेने पर मुख्यमंत्री ज़रूर टिप्पणी करेंगी.

उस बैठक में मुख्यमंत्री ने इस सांप्रदायिक हिंसा को 'पूर्व नियोजित दंगा' करार देते हुए इसके लिए बीजेपी पर निशाना साधा है. उन्होंने अपना ज़्यादातर भाषण हिंदी में ही दिया.

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इससे लग रहा था कि उन्होंने गै़र-बंगाली मुस्लिमों को ध्यान में रखते हुए ही यह बातें कही हैं.

उनकी इस टिप्पणी के जवाब में बीजेपी ने कहा है कि सरकार को यह बताना चाहिए कि मुर्शिदाबाद में हिंसा में शामिल होने के आरोप में जो दो सौ से ज़्यादा लोग गिरफ़्तार किए गए हैं, उनमें से कितने बांग्लादेशी नागरिक हैं.

केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी के साथ ही सोशल मीडिया पर कई लोगों ने टिप्पणी की है कि भारतीय सीमा सुरक्षा बल के बारे में ऐसी टिप्पणी के लिए मुख्यमंत्री के ख़िलाफ़ कड़ी क़ानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए.

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ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री को संबोधित करते हुए कहा, "क्या आपको बांग्लादेश की परिस्थिति के बारे में जानकारी नहीं है? आप वहां की अंतरिम सरकार के मुखिया के साथ गोपनीय बैठक और समझौते करें. देश की भलाई होने पर मुझे ख़ुशी होगी. लेकिन, आप लोगों की योजना क्या है? किसी एजेंसी के ज़रिए वहां से लोगों को लाकर यहां दंगा कराना?"

ममता के इस भाषण का उनके ऑफिशियल फेसबुक पर लाइव प्रसारण किया गया था.

ममता बनर्जी ने न्यूज़ एजेंसी एएनआई की ओर से एक्स (पहले ट्विटर) पर एक पोस्ट का ज़िक्र करते हुए कहा, "कल मैंने एएनआई का एक ट्वीट देखा है. उसमें केंद्रीय गृह मंत्रालय के सूत्रों के हवाले से बताया गया था कि इस हिंसा में बांग्लादेश का हाथ है."

उन्होंने बीएसएफ़ की भूमिका का ज़िक्र करते हुए कहा था, "अगर इस हिंसा में बांग्लादेश का हाथ है, तो इसकी ज़िम्मेदारी केंद्र सरकार पर आती है. सीमा की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ़) की है. इस मामले में राज्य सरकार की कोई भूमिका नहीं है."

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मुख्यमंत्री ने अपने भाषण के आख़िर में मुर्शिदाबाद की हिंसा में बांग्लादेश का हाथ होने और बीएसएफ़ की ज़िम्मेदारी की बात को दोहराया भी था.

उनका सवाल था, "आपने इसकी अनुमति कैसे दे दी? बीजेपी के लोग कैसे बाहर से आकर यहां अशांति फैलाने के बाद भाग गए?"

ममता ने बुधवार को अपने में भाषण कई बार यह बात कही कि मुर्शिदाबाद की सांप्रदायिक हिंसा 'बीजेपी की योजना' का नतीजा थी.

उनका कहना था, "यह पूरी तरह सुनियोजित दंगा है. मुझे भी आम लोगों की ओर से इस बारे में कई सूचनाएँ मिल रही हैं. बीजेपी ने बाहर से गुंडों को लाने की योजना बनाई थी. पहले उनकी योजना रामनवमी के दिन ऐसा करने की थी. लेकिन, आप लोगों ने उस योजना को नाकाम कर दिया."

कोलकाता की बैठक में ममता ने मुस्लिम धर्मगुरुओं से कहा, "आप लोग शांत रहें. भाजपा के उकसावे में मत आइए. इस मामले में इमामों को एक सकारात्मक भूमिका निभानी होगी. मैं इस बात का पता लगा कर रहूंगी कि बीएसएफ़ ने किसका-किसका इस्तेमाल किया है और कैसे कुछ किशोरों को पांच-पांच, छह-छह हज़ार रुपये देकर पथराव कराया है."

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मुर्शिदाबाद की हिंसा में बांग्लादेशी नागरिकों के शामिल होने के मुख्यमंत्री के आरोप पर अब बीजेपी ने भी बयान दिया है.

पार्टी ने सवाल किया कि उस हिंसा में शामिल होने के आरोप में पुलिस की ओर से गिरफ़्तार लोगों में कितने बांग्लादेशी हैं?

राज्य में पार्टी की प्रवक्ता केया घोष ने बीबीसी बांग्ला से कहा, "पुलिस ने इस घटना में शामिल होने के आरोप में दो सौ से ज़्यादा लोगों को गिरफ़्तार किया है. अब मुख्यमंत्री को यह बताना चाहिए कि इनमें से कितने बांग्लादेशी नागरिक हैं."

उनका कहना था, "इस हिंसा में दो हिंदुओं की हत्या हुई है. वो पिता-पुत्र थे. उनकी हत्या के आरोप में पुलिस ने जिन दो भाइयों को गिरफ़्तार किया है, वो तो स्थानीय व्यक्ति ही हैं. इनमें बांग्लादेशी एंगल कहां से आ गया? लेकिन मुझे जो ख़बरें मिली हैं, उनके मुताबिक कई अपरिचित चेहरे भी हिंसा में शामिल हुए थे. उनको मुर्शिदाबाद के ही एक से दूसरे इलाकों में भेजा गया था, ताकि स्थानीय लोग पहचान नहीं सकें."

केया घोष का कहना था कि ममता ने बुधवार की बैठक में बीएसएफ़ के ख़िलाफ़ जो आरोप लगाए हैं, वो बेहद आपत्तिजनक हैं.

वो कहती हैं, "जो जवान दिन-रात मेहनत करते हुए हमारी सीमाओं को सुरक्षित रखते हैं, उनके ख़िलाफ़ भी मुख्यमंत्री ने ऐसी एक आपराधिक गतिविधि में शामिल होने का आरोप लगाया है? मुझे तो लगता है कि बीएसएफ़ को उनके (ममता बनर्जी के) ख़िलाफ़ कड़ी क़ानूनी कार्रवाई करनी चाहिए."

केया का सवाल है कि मुर्शिदाबाद की हिंसा शुरू होने पर फ़ौरन बीएसएफ़ को किसने बुलाया था?

वो कहती हैं, "ज़िला प्रशासक ने ही तो बीएसएफ़ को मौके पर उतारा था. ऐसा नहीं होने की स्थिति में पुलिस के लिए परिस्थिति को नियंत्रित करना संभव नहीं था. ज़िला प्रशासक ने उचित कदम उठाया था. लेकिन, मुख्यमंत्री अब बीएसएफ़ पर झूठे आरोप लगा रही हैं."

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मुर्शिदाबाद ज़िले के तृणमूल कांग्रेस के जनप्रतिनिधि भी अब सार्वजनिक रूप से कहने लगे हैं कि प्राथमिक तौर पर वहां होने वाली हिंसा पर काबू पाने में पुलिस प्रशासन नाकाम रहा था.

हालांकि, हिंसा शुरू होने के कुछ दिनों बाद ही राज्य के पुलिस महानिदेशक राजीव कुमार समेत तमाम शीर्ष अधिकारी मुर्शिदाबाद पहुंच गए थे और तेज़ी से गिरफ़्तारियां भी शुरू हो गई थीं.

लेकिन, तृणमूल कांग्रेस के विधायकों ने ही पुलिस पर शुरुआती दौर में परिस्थिति पर काबू पाने में नाकाम रहने का आरोप लगाया है.

राजनीतिक विश्लेषक शुभाशीष मैत्र का बीबीसी बांग्ला से कहना था, "वक्फ़ क़ानून के ख़िलाफ़ होने वाला विरोध प्रदर्शन इतनी जल्दी इतना हिंसक हो उठेगा, यह पहले से पता क्यों नहीं लग सका? इसे राज्य के खुफिया विभाग की नाकामी ही माना जाएगा. इससे पहले संशोधित नागरिकता क़ानून के मुद्दे पर भी उस इलाक़े में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए थे. लेकिन, इस बार खुफिया एजेंसियों को इसकी पूर्व सूचना क्यों नहीं मिली?"

वो कहते हैं, "फिलहाल पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों ने परिस्थिति पर काबू पा लिया है. लेकिन, लगता है कि पूर्व सूचना नहीं होने और पहले दिन से ही परिस्थिति पर काबू पाने में नाकाम रहने की वजह से ही इस मामले ने सांप्रदायिक रंग ले लिया."

उनके मुताबिक, अब तमाम राजनीतिक दल सांप्रदायिक हिंसा की इस आंच पर अपनी रोटियां सेंकने में जुट गए हैं.

उनका कहना था, "राज्य में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. उससे पहले इस घटना के बहाने वोटरों के धार्मिक ध्रुवीकरण का प्रयास होना तो तय ही है. एक ओर बीजेपी हिंदू वोटरों को एकजुट करने का प्रयास करेगी तो दूसरी ओर ममता बनर्जी भी अपने अल्पसंख्यक वोट बैंक पर पकड़ बनाए रखने की कोशिश करेंगी."

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यहां इस बात का ज़िक्र प्रासंगिक है कि वक्फ़ क़ानून के विरोध में देश के विभिन्न राज्यों के साथ पश्चिम बंगाल के विभिन्न ज़िलों में बीते कुछ दिनों से विरोध-प्रदर्शन जारी हैं. कोलकाता में भी प्रदर्शन हो चुका है.

बीते सप्ताह मंगलवार और बुधवार को मुर्शिदाबाद ज़िले के रघुनाथपुर और सूती थाना इलाके में हिंसक झड़पें होने की सूचना मिली थी.

कई अल्पसंख्यक संगठन के विरोध प्रदर्शन के बाद इन थाना इलाकों में धारा 163 लागू करते हुए पांच या उससे ज़्यादा लोगों के एक साथ जुटने पर पाबंदी लगा दी गई थी.

इसके अलावा प्रशासन ने इंटरनेट सेवा पर भी पाबंदी लगा दी थी. लेकिन, उसके एक दिन बाद शुक्रवार को माहौल एक बार फिर अशांत हो उठा.

इसके बाद, शनिवार को मुर्शिदाबाद ज़िले में पुलिस ने तीन लोगों की मौत की पुष्टि की. परिस्थिति के मुकाबले के लिए बीएसएफ को मौके पर उतारा गया.

एक जनहित याचिका के आधार पर कलकत्ता हाईकोर्ट ने परिस्थिति पर काबू पाने के लिए केंद्रीय सुरक्षा बल के जवानों को तैनात करने का आदेश दिया था.

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