
जुलाई, 2023. अमेरिका की एक संसदीय समिति के सदस्यों को 3 वीडियो दिखाये गए जिसे अमेरिकी नौसेना के लड़ाकू विमानों के कैमरों ने आसमान में रिकॉर्ड किया था.
इन ब्लैक एंड व्हाइट वीडियो की तस्वीरें कुछ धुंधली थीं. इनमें से एक में चमकदार अंडाकार चीज़ आसमान में तेज़ी से घूमती हुई उड़ती नज़र आ रही थी.
उसे देख रहे नौसेना के पायलटों की प्रतिक्रिया भी रिकॉर्ड हो गई, उनकी बात से लगा वो हैरान थे.
दो वीडियो जिन्हें अलग समय पर रिकॉर्ड किया गया था उनमें भी ऐसी ही रहस्यमयी चीज़ आसमान में इसी तरह उड़ती दिखाई दे रही थी.
यह वीडियो फ़ुटेज काफ़ी पहले लीक हो गया था. मगर अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने आधिकारिक तौर पर इसे 2020 में रिलीज़ किया.
इन्हें यूट्यूब पर लाखों लोगों ने देखा. मगर इस साल जुलाई में अमेरिकी संसद की एक समिति के सदस्यों ने कहा कि उनका मकसद सच्चाई की तह तक पहुंचना है.
लेकिन इससे ये कयासबाज़ी बढ़ गई कि पृथ्वी के अलावा अन्य किसी ग्रह पर भी जीवन है क्या?
इस सप्ताह दुनिया जहान में हम यही जानने की कोशिश करेंगे कि क्या ब्रह्मांड में पृथ्वी के अलावा भी कहीं जीवन है?
ग्रेग ऐगिगियन अमेरिका की पेन स्टेट यूनिवर्सिटी में इतिहास और बॉयो एथिक्स के प्रोफ़ेसर हैं.
वो कहते हैं कि सदियों से लोगों को आसमान में रहस्यमयी चीज़ें दिखाई देती रही हैं. उड़ती रहस्यमयी चीज़ों को यूएफ़ओ यानि अनआइडेंटिफ़ाईड फ़्लाईंग ऑब्जेक्ट कहा जाता है.
वो कहते हैं, “यूएफ़ओ के बारे में 1947 में पहली बार चर्चा शुरू हुई जब केनेथ आर्नल्ड नाम के एक निजी पायलट ने अमेरिका के पश्चिमी तट के पास उड़ान के दौरान आसमान में कुछ चीज़ों को एक ख़ास फ़ॉर्मेशन में तेज़ी से उड़ते हुए देखा. उन्हें यह चीज़ अजीब जान पड़ी.”
“बहुत ही जल्द ख़बर आग की तरह फैल गई और एक पत्रकार ने उसे फ़्लाईंग सॉसर यानी उड़न तश्तरी का नाम दिया. बाद में ऐसी चीज़ों को यूएफ़ओ कहा जाने लगा. और यह माना जाने लगा कि ये चीज़ें किसी दूसरे ग्रह से आई हो सकती हैं. इसलिए यह ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है.”
उसके बाद यूएफ़ओ दिखाई देने के दावे करने वाली घटनाएं तेज़ी से बढ़ने लगीं.
ग्रेग ऐगिगियन के अनुसार, 1950 में यूएफ़ओ दिखाई देने की वारदातों की लहर आ गई थी. अमेरिका में वाशिंगटन, यूरोप में इटली और स्पेन और फिर लातिन अमेरिका से यूएफ़ओ देखे जाने की ख़बरें आने लगीं.
1954 में फ़्रांस से न सिर्फ यूएफ़ओ देखे जाने कि ख़बरें आईं बल्कि कुछ लोगों ने उनके भीतर बैठे लोगों को देखने का भी दावा किया.
इसके बाद 70, 80 और 90 के दशक में भी ऐसी ख़बरें आती रहीं.
ग्रेग ऐगिगियन कहते हैं कि कुछ हद तक इन ख़बरों की एक वजह शीत युद्ध भी था जो अमेरिका, उसके सहयोगी देशों और सोवियत संघ के बीच लगभग 45 साल तक जारी रहा.
उस दौरान दोनों ही खेमे एक दूसरे के बारे में ख़ुफ़िया जानकारी इकठ्ठा करने के कई तरीके अपना रहे थे. साथ ही लोगों में यह धारणा भी बन रही थी कि हो सकता है दूसरे ग्रहों पर रहने वाले एलियंस ने हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए परमाणु हमले को देखा हो और उत्सुकतावश या डर के कारण वो पता करने के लिए पृथ्वी के चक्कर लगा रहे हों.
ग्रेग का मानना है, 'इसकी दूसरी वजह यह थी कि 1950 के दशक में कई देशों के बीच चांद पर पहुंचने या उससे भी आगे जाने की रेस शुरू हो गई थी.'
“यूएफ़ओ से जुड़ी धारणाओं को स्पेस एज के दौरान आई साइंस फ़िक्शन की किताबों और फ़िल्मों के कारण भी बल मिला. पहली बार चांद या मंगल ग्रह पर इंसान को बसाने की संभावना पर चर्चा हो रही थी क्योंकि टेक्नोलॉजी की क्षमता बढ़ रही थी. ज़ाहिर सी बात है कि लोग सोचने लगे थे कि अगर हमारे पास यह क्षमता आ सकती है तो हमसे अधिक विकसित सभ्यताओं के पास निश्चित ही इससे कहीं अधिक क्षमता और टेक्नोलॉजी होगी.”
ग्रेग ऐगिगियन कहते हैं कि संभवत: 2010 के बाद से इस विषय में मीडिया की दिलचस्पी काफ़ी बढ़ गई और विस्तार से इसकी चर्चा होने लगी है.
खोजी पत्रकार लेस्ली कीन 23 सालों से यूएफ़ओ से जुड़ी ख़बरों के बारे में रिपोर्टिंग कर रही हैं. उनका कहना है कि अमेरिका का रक्षा विभाग 2010 से ही यूएफ़ओ पर जानकारी जुटाने के लिए एक गुप्त कार्यक्रम चला रहा है जिसे अब वो यूएफ़ओ के बजाय अनआइडेंटिफ़ाइड एनोमेलस फ़िनॉमिना या यूएपी कहते हैं. यूएपी यानी ऐसी रहस्यमयी चीजें या घटनाएं जिन्हें समझा नहीं जा सका है.
“यूएफ़ओ के साथ कई धारणाएं जुड़ी हुई थीं, जिनका मज़ाक उड़ाया जाता था. दूसरी बात यह है कि अब सिर्फ़ आसमान में ही नहीं बल्कि पानी के नीचे भी अजीब, रहस्यमयी चीज़ें दिखाई देने की ख़बरें आ रही थीं. ऐसे में इन रहस्यमयी घटनाओं को व्यापक तरीके से परिभाषित करने के लिए इन्हें यूएपी कहा जा रहा है.”
2017 में अमेरिकी यूएपी टास्क फ़ोर्स के प्रमुख ने इस प्रोजेक्ट के लिए धन और सहायता की कमी से तंग आकर इस्तीफ़ा दे दिया और इस बात को सार्वजनिक कर दिया.
लेस्ली कीन कहती हैं कि यूएपी टास्क फ़ोर्स के प्रमुख ने अपने सहयोगियों के साथ एक बैठक में उन्हें बुलाया और कई प्रकार के दस्तावेज़, वीडियो और जानकारी साझा की.
इसके आधार पर लेस्ली ने अपनी टीम के साथ मिल कर न्यूयॉर्क टाइम्स में एक ख़बर छापी. उसके बाद इस विषय में काफ़ी चर्चा शुरू हो गई.
सरकारी अधिकारियों को इस कार्यक्रम के लिए धन उपलब्ध कराने की मंज़ूरी मिल गई और उन्होंने गंभीरता से इसकी जांच शुरू की.
इस वर्ष जून में लेस्ली कीन ने डेविड ग्रश नाम के एक व्हिसल ब्लोवर और पूर्व वरिष्ठ अमेरिकी ख़ुफ़िया अधिकारी के साथ इंटरव्यू के आधार पर एक और ख़बर छापी. डेविड ग्रश अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका के सैनिक अभियान में भी शामिल रहे हैं.
उन्होंने दावा किया कि अमेरिका कई वर्षों से एक ख़ुफ़िया प्रोजेक्ट चला रहा है जिसके तहत दुर्घटनाग्रस्त हुए यूएपी पर कब्ज़ा करके उसमें मौजूद चीज़ों और संभवत: उनके चालकों के अवशेषों का रिवर्स इंजीनियरिंग के ज़रिए अध्ययन किया जाता है.
लेस्ली कीन ने कहा कि, “यह बड़ा महत्वपूर्ण दावा है. उन्होंने इस प्रोजेक्ट में काम करने वाले लोगों और ख़ुफ़िया विभाग से जुड़े कई वरिष्ठ अधिकारियों से भी इस विषय में बात की थी. उन्होंने अमेरिकी संसद में यह जानकारी पेश की. कई लोगों ने यह भी कहा कि डेविड ग्रश ने यूएपी के अवशेषों को ना तो ख़ुद देखा है ना छुआ है. लेकिन ग्रश ने बताया कि किस दिन और किस जगह पर यूएपी गिरे थे, किन लोगों ने उसे अपने कब्ज़े में लिया था. मगर यह सारी जानकारी क्लासीफ़ाइड है. यानि इसे सार्वजानिक नहीं किया जा सकता. अमेरिकी संसद को इसकी जांच करनी चाहिए.”
अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि जांचकर्ताओं के पास इन दावों की पुष्टि होने की जानकारी नहीं है.
उन्होंने कहा कि यूएपी की रिवर्स इंजीनियरिंग का कोई प्रोजेक्ट ना पहले था ना अब है. अमेरिकी संसद की सुनवाई में डेविड ग्रश ने शपथ लेकर अपना बयान दिया था. इस दौरान पूर्व सैनिक अधिकारियों ने भी अपने आंखों देखे अनुभव को बयान किया.
संसदीय समिति की सुनवाई का मकसद यह पता लगाना है कि क्या सरकार इस बारे में कुछ छिपा रही है.
लेस्ली कीन कहती हैं, “मैं 17 साल से कह रही हूं कि यह हवाई यातायात की सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा है जिसकी जांच होनी चाहिए. मैं यह कहना चाह रही थी कि यूएफ़ओ वास्तव में अस्तित्व में हैं. और यह एक अलग दुनिया है. संसद के सदस्यों को काफ़ी ख़ुफ़िया जानकारी दी गई है इसलिए वो इसे इतनी गंभीरता से ले रहे हैं. मगर विश्व के आम लोगों को भी यह जानने का अधिकार है कि ब्रह्मांड में पृथ्वी पर ही नहीं बल्कि उसके बाहर भी जीवन है. हमारे पास इसका सुबूत है.”

एडम फ़ैंक, रोचेस्टर यूनिवर्सिटी में खगोल विज्ञान के प्रोफ़ेसर हैं. वो कहते हैं कि अभी तक यूएफ़ओ या यूएपी पर चर्चा में विज्ञान का ख़ास संबंध नहीं रहा है क्योंकि विज्ञान धारणाओं और किस्सों पर नहीं बल्कि ठोस सबूतों पर काम करता है.
“अभी तक विज्ञान इस बारे इसलिए कुछ ख़ास नहीं कर पाया है क्योंकि ज़्यादातर जानकारी लोगों के सुने सुनाए किस्से, कहानियों पर आधारित है. कोई भी पुलिसकर्मी या मनोवैज्ञानिक भी यही कहेगा कि लोगों की याददाश्त किसी बात का भरोसेमंद सबूत नहीं होती. इस पर काम करने के लिए आवश्यक जानकारी वैज्ञानिकों के पास नहीं है.”
लेकिन अब समय बदल रहा है. और दूसरे ग्रहों पर जीवन या एडवांस टेक्नोलॉजी की खोज करने के लिए अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने हीट सिग्नेचर ढूंढने के लिए जो प्रोजेक्ट शुरू किया है उसमें एडम फ़ैंक भी एक प्रमुख जांचकर्ता हैं.
वो कहते हैं कि सबसे महत्वपूर्ण सवाल है कि यह खोज कहां की जाए, “मिसाल के तौर पर अगर आपको नेब्रास्का में रहने वाले व्यक्ति को ढूंढना हो तो आप उसे हिमालय के किसी गांव में नहीं बल्कि नेब्रास्का में ढूंढेंगे. यही बात एलियंस के बारे में भी लागू होती है. सौरमंडल में 400 अरब तारे हैं. और बहुत सारे ग्रह हैं. पृथ्वी तो हिमालय के एक छोटे से गांव जैसा है. एलियंस को उन ग्रहों पर ढूंढना होगा जहां वो रहते हैं.”
अमेरिका की संसदीय समिति के सामने नौसेना के पायलटों की गवाही की बारे में एडम फ़ैंक कहते हैं कि इस पर पारदर्शी तरीके से चर्चा और जांच हो तो बेहतर रहेगा. लेकिन व्हिसल ब्लोवर द्वारा यूएपी के अवशेष पाए जाने के दावों को वो संदेह से देखते हैं.
“यह सब एक्स फ़ाइल्स के एपिसोड जैसा जान पड़ता है. इस बात पर विश्वास करना मुश्किल है कि पिछले सत्तर सालों में किसी को एलियंस या यूएपी के अवशेषों की कोई तस्वीर नहीं मिल पाई है. एक और बात पर ग़ौर कीजिए. तारों और सौर मंडलों के बीच फ़ासले इतने लंबे हैं कि उसकी गिनती करने में ही आपका दिमाग चकरा जाएगा. तो किसी जीव या सभ्यता के पास इतनी एडवांस टेक्नोलॉजी है कि वो इतने लंबे फ़ासले तय कर सकते हैं तो यह कहना कि उनका यान यहां आकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया, यह कुछ अविश्वसनीय लगता है.”
एडम फ़ैंक ने कहा कि नासा के वैज्ञानिकों ने उस वीडियो का आकलन किया जिसमें कोई चीज़ उड़ती नज़र आ रही है मगर उसकी रफ़्तार केवल 40 मील प्रति घंटा थी जो कि एक्सट्राटेरेस्ट्रियल रफ़्तार नहीं है. यानी कि ठोस सबूत के बिना वैज्ञानिक इन्हें केवल अटकलों की तरह ही देखेंगे.
एडम फ़ैंक ने कहा कि, “हमारे पास जेम्स वेब जैसे शक्तिशाली टेलीस्कोप हैं जिनके पास कई प्रकाशवर्ष दूर के दूसरे ग्रहों में एलियंस की दुनिया में झांकने की क्षमता है. अगर वहां ऑक्सीजन हो तो यह टेलिस्कोप उसका पता लगा सकते हैं. हमें उस ग्रह की बायो सिग्नेचर मिल जाएगी जिससे पता चलेगा वहां किस प्रकार की जैव विविधता है.”
एडम फ़ैंक के अनुसार, एस्ट्रोबायोलॉजी में जिस प्रकार की क्रांति आ रही है उससे लगता है कि इसी पीढ़ी को पता चल जाएगा कि पृथ्वी के बाहर भी जीवन है या नहीं.
लेकिन अगर पृथ्वी के बाहर भी जीवन हुआ तो क्या होगा?
चेल्सी हेरेमिया यूके की संस्था सेटी की पोस्ट-डिटेक्शन हब की सदस्य हैं. सेटी यानी सर्च फ़ॉर एक्स्ट्रा टेरेस्ट्रियल इंटेलिजेंस. इसके डिटेक्शन हब का काम है, अगर एलियंस का पता लग जाता है तो उनकी टेक्नोलॉजी से निपटने के लिए मनुष्यों को कैसे तैयार किया जाए.
चेल्सी हेरेमिया ने बीबीसी को बताया, “अगर एलियंस का पता लग जाता है तो क्या करना है, इसकी कोई लिस्ट हमारे पास नहीं है. बहुत कुछ उस समय की स्थिति पर निर्भर करेगा. ऐसी स्थित में हमें न्याय और शोषण जैसे मुद्दों के बारे में सोचना होगा. हम जानते हैं कि जो लोग सत्ता में होते हैं वो ऐसी स्थिति में अक्सर शोषण करने की कोशिश करते हैं. बुरा व्यवहार करते हैं. धरती पर अभी भी हम दूसरी जगहों से आने वालों को एलियंस कहते हैं. उनके साथ इंसानियत नहीं बरतते.”
आमतौर पर यह भी देखा गया है कि कुछ सरकारें दूसरी सरकारों की तुलना में अधिक बुरा बर्ताव करती हैं, अधिक अमानवीय होती हैं फिर एलियंस का पता लगने के बाद उनसे किस तरह संपर्क किया जाए यह भी एक सवाल होगा.
चेल्सी हेरेमिया नो कहा, “होगा यह कि कुछ सरकारें नैतिक रूप से सही फ़ैसले करेंगी और कुछ सरकारें ऐसा नहीं करेंगी. कुछ लोगों के लिए यह ताकत हथियाने का मौका होगा. कुछ सरकारें एक्स्ट्रा टेरेस्ट्रियल के साथ संपर्क का एकाधिकार पाने की कोशिश कर सकती हैं. कुछ लोग उनके बारे मे जानकारी साझा नहीं करना चाहेंगे. यह विज्ञान के इस्तेमाल की नैतिकता का मुद्दा है.”
इसमें कई सरकारों को मिल कर काम करने की ज़रूरत होगी. इसमें बाधाएं आ सकती हैं क्योंकि इसके लिए सरकारों के एक दूसरे के साथ अपनी विशेष टेक्नोलॉजी को साझा करना पड़ सकता है.
चेल्सी हेरेमिया की राय है कि यह आसान नहीं होगा, “सरकारों के लिए एक दूसरे के साथ इस प्रकार की वैज्ञानिक टेक्नोलॉजी, जानकारी का आदान प्रदान और समन्वय बहुत चुनौतीपूर्ण होगा. इस जटिल जानकारी को लोगों तक आसानी से पहुंचाना मुश्किल होगा. मानवता के इतिहास की इस महत्वपूर्ण घड़ी में नैतिकता से काम लेना भी बहुत महत्वपूर्ण होगा.”
पूर्व और वर्तमान ख़ुफ़िया अधिकारी, व्हिसल ब्लोवर और ऐसे लोग जिन्हें लगता है उन्होंने यूएपी देखे हैं उनका कहना है कि ‘पृथ्वी के बाहर जीवन मौजूद है’. मगर वैज्ञानिक यह बात तब तक नहीं मानेंगे जब तक उनके पास ऐसे पुख़्ता सबूत नहीं आ जाते जिनकी पड़ताल की जा सके.
हालांकि ग्रेग ऐगिगियन मानते हैं कि ‘यूएपी हमारी सामाजिक हक़ीकत हैं. हमने उन्हें अपनी सामाजिक हक़ीकत का हिस्सा बना लिया है. इसलिए अब ज़रूरी है कि इसका गहराई से अध्ययन किया जाए.’
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