अमेरिका की कमान डोनाल्ड ट्रंप के हाथ में आने के बाद से दुनिया भर में ट्रेड वॉर छिड़ा है. इसका सीधा असर भारत पर भी पड़ रहा है.
लेकिन, इन सबसे अलग भारत और बांग्लादेश के बीच एक अलग तरह का ट्रेड वॉर चल रहा है.
थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में छठे बिम्सटेक समिट से अलग भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस की मुलाक़ात के बाद लग रहा था कि दोनों देशों के संबंधों में जमी बर्फ़ पिघल जाएगी.
लेकिन, इस बैठक के तीन दिन बाद ही भारत सरकार ने बांग्लादेश को 2020 से मिली ट्रांसशिपमेंट सुविधा वापस ले ली. इस सुविधा के कारण बांग्लादेश भारत के एयरपोर्ट और बंदरगाहों का इस्तेमाल तीसरे देश में अपने उत्पादों के निर्यात के लिए करता था.
बांग्लादेश को मिली यह सुविधा ख़त्म करने का कारण बताते हुए भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा था कि भारत के एयरपोर्ट और बंदरगाहों पर भीड़ बढ़ गई थी, इसलिए यह फ़ैसला लेना पड़ा.
जायसवाल ने कहा था कि भीड़ के कारण भारतीय निर्यात की लागत और लेटलतीफी बढ़ गई थी. भारत के इस फ़ैसले की बांग्लादेश के मीडिया में तीखी आलोचना हुई.
बांग्लादेश के प्रमुख अंग्रेज़ी अख़बार ढाका ट्रिब्यून ने अपने संपादकीय में लिखा था, ''भारत से बांग्लादेश को जो ट्रांसशिपमेंट सुविधा मिली थी, उसका इस्तेमाल शायद ही होता था. इसे क्षेत्रीय सहयोग में प्रतीकात्मक रूप से अहम माना जाता था.''
अब बांग्लादेश ने भी जवाब में एक फ़ैसला किया है. बांग्लादेश ने भारत से लैंड पोर्ट रूट के ज़रिए सूत के आयात पर पाबंदी लगा दी है.
बांग्लादेश के अंग्रेज़ी अख़बार द डेली स्टार ने लिखा है कि (एनबीआर) ने स्थानीय कपड़ा उद्योग को भारत के कच्चे माल से बचाने के लिए यह फ़ैसला किया है.
लेकिन कहा जा रहा है कि ये फ़ैसला ख़ुद बांग्लादेश पर भारी पड़ेगा.
द डेली स्टार के अनुसार, इस फ़ैसले का बांग्लादेश के कपड़ा मिल मालिकों ने स्वागत किया है, लेकिन निर्यातकों ने विरोध किया है.
द डेली स्टार ने लिखा है कि 13 अप्रैल को जारी अधिसूचना में एनबीआर ने बेनापोले, भोमरा, बांग्लाबंधा, बरीमारी और सोनामस्जिद लैंड पोर्ट के ज़रिए भारत से आयात होने वाले सूत पर पाबंदी लगा दी है.
प्लमी फैशन लिमिटेड के महाप्रबंधक मोहम्मद फ़ज़लुल हक़ ने कहा, ''यह अच्छा फ़ैसला नहीं है. बांग्लादेश पहले से ही अमेरिकी बाज़ार में निर्यात पर 10 प्रतिशत टैरिफ का सामना कर रहा है. हमें भारतीय उत्पादों से भी चुनौती मिल रही है. ऐसी स्थिति में भारत से सूत आयात पर किसी भी तरह की पाबंदी से बांग्लादेश का निर्यात प्रभावित होगा. हमें भारत से सूत आयात की अनुमति मिलनी चाहिए. मुक्त बाज़ार में इस तरह की पाबंदी का कोई मतलब नहीं है.''

बांग्लादेश के इस फ़ैसले को भारत के लिए भी ठीक नहीं माना जा रहा है. भारत ने पिछले साल 1.6 अरब डॉलर का सूत बांग्लादेश में निर्यात किया था.
इसके अलावा 8.5 करोड़ डॉलर का मानव निर्मित फाइबर का निर्यात किया था. इनमें से ज़्यादातर सूत लैंड रूट के ज़रिए बांग्लादेश पहुँचा था.
भारत के अंग्रेज़ी अख़बार से कॉटन टेक्सटाइल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के कार्यकारी निदेशक सिद्धार्थ राजगोपाल ने कहा, ''भारत से बांग्लादेश को जितने सूत का निर्यात होता है, उसका 32 प्रतिशत लैंड पोर्ट के ज़रिए होता है. बांग्लादेश का यह फ़ैसला काफ़ी चिंताजनक है.''
सिद्धार्थ राजगोपाल ने कहा, ''उत्तर भारत की कपड़ा मिलों से लैंड रूट के ज़रिए सूत का निर्यात बांग्लादेश होता था क्योंकि लागत कम लगती है. अब इन्हें मुंद्रा, थूठुकुडी या नहवा शेवा पोर्ट से निर्यात करना होगा. ऐसी स्थिति में लागत ज़्यादा लगेगी. बांग्लादेश के रेडीमेड कपड़ा निर्यातक जो भारत से सूत आयात करते थे, उन्हें भी ज़्यादा पैसे देने होंगे और आपूर्ति में भी देरी होगी.''
द हिन्दू से ही कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री के चेयरमैन राकेश मेहरा ने कहा, ''भारत से जितने सूत का निर्यात होता है, उसमें 45 प्रतिशत बांग्लादेश में होता है. बांग्लादेश के फ़ैसले से भारत का सूत निर्यात बुरी तरह से प्रभावित होगा.''
थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने बीबीसी हिन्दी से कहा, ''बांग्लादेश का 80 फ़ीसदी निर्यात कपड़ा है. बांग्लादेश के लोग बहुत ही अच्छी क्वॉलिटी का कपड़ा बनाते हैं. कपड़े बनाने के दो तरीक़े हैं. एक तो यह है कि आप चीन से फैब्रिक आयात कर लो और सीधे अपने लेबर से कट करवा दो और सिलाई कर लो और मार्केट में भेज दो. लेकिन, इसमें वैल्यू एडिशन नहीं होता है. दूसरा तरीक़ा है कि आप सूत लाइए और फिर फैब्रिक बनाइए और उसे कपड़ों में बदलिए.''
अजय श्रीवास्तव कहते हैं, ''इसमें वैल्यु एडिशन अधिक होता है और ज़्यादा लोगों को रोज़गार भी मिलता है. बांग्लादेश के कपड़ा कारोबारी एक साल में 1.5 अरब डॉलर का सूत भारत से ले रहे थे. ऐसे में यार्न को फैब्रिक बनाने वाली बांग्लादेश में कई इंडस्ट्री चल रही थी. अब ये सीधे चीन से फैब्रिक आयात करेंगे और कपड़ा बनाएंगे. इससे क्वॉलिटी पर भी बुरा असर पड़ेगा क्योंकि इसमें कोई वैल्यू एडिशन नहीं होगा. ऐसे में बांग्लादेश में बड़ी संख्या में लोगों की नौकरियां जाएंगीं. इससे चीन को फ़ायदा होगा लेकिन बांग्लादेश को नुक़सान होगा.''
ट्रांसशिपमेंट पर रोक को लेकर भारत भले तर्क दे रहा है कि उसने लॉजिस्टिकल समस्या के कारण यह फ़ैसला किया, लेकिन जियोपॉलिटिक्स में टाइमिंग भी मायने रखती है.
दूसरी तरफ़ बांग्लादेश भले कह रहा है कि उसने स्थानीय कपड़ा उद्योग के हित में यह फ़ैसला किया है, लेकिन इस फ़ैसले की टाइमिंग भी कई बातें कहती हैं.
मोहम्मद यूनुस 26 से 29 मार्च तक चीन के दौरे पर थे. इसी दौरे में यूनुस ने ऐसा बयान दिया, जिससे भारत का नाराज़ होना लाजिमी था.
मोहम्मद यूनुस ने पूर्वोत्तर भारत की लैंडलॉक्ड स्थिति का हवाला दिया था. यूनुस ने कहा था कि पूर्वोत्तर भारत का समंदर से कोई कनेक्शन नहीं है और बांग्लादेश ही इस इलाक़े का अभिभावक है.
मोहम्मद यूनुस ने कहा था, ''भारत के सेवन सिस्टर्स राज्य लैंडलॉक्ड हैं. इनका समंदर से कोई संपर्क नहीं है. इस इलाक़े के अभिभावक हम हैं. चीन की अर्थव्यवस्था के लिए यहाँ पर्याप्त संभावनाएं हैं. चीन यहाँ कई चीज़ें बना सकता है और पूरी दुनिया में आपूर्ति कर सकता है.''
पूर्वोत्तर भारत दशकों से उग्रवाद ग्रस्त रहा है और बांग्लादेश पर इन राज्यों में उग्रवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगता रहा है.
हालांकि, पूर्वोत्तर भारत में उग्रवाद अभी काबू में है लेकिन एक किस्म की बेचैनी अब भी देखने को मिलती है. भारत का यह इलाक़ा काफ़ी संवेदनशील माना जाता है.
ख़ास कर सिलीगुड़ी कॉरिडोर के कारण. महज 22 किलोमीटर चौड़े इस कॉरिडोर के ज़रिए ही पूर्वोत्तर भारत का बाक़ी भारत से ज़मीन से जुड़ाव है.
बांग्लादेश और नेपाल भी इसी कॉरिडोर के साथ सीमा साझा करते हैं. इसे 'चिकन नेक' भी कहा जाता है. भूटान और चीन भी इस कॉरिडोर से महज कुछ किलोमीटर ही दूर हैं.
पिछले साल सोशल मीडिया पर इस बात की काफ़ी चर्चा थी कि बांग्लादेश लालमोनिरहाट में चीन के सहयोग से बने एक पुराने एयरबेस को फिर से ऑपरेशनल बना रहा है.
यह भारत की सीमा से महज 12-15 किलोमीटर दूर है और सिलीगुड़ी कॉरिडोर से लगभग 135 किलोमीटर.
हालांकि, इन ख़बरों को फेक न्यूज़ बताकर ख़ारिज कर दिया गया. लेकिन, मोहम्मद यूनुस के चीन दौरे से इस पर फिर से चर्चा शुरू हो गई है.
मोहम्मद यूनुस ने पूर्वोत्तर भारत को लैंडलॉक्ड बताकर फिर से बहस छेड़ दी है कि क्या बांग्लादेश इस इलाक़े की संवेदनशीलता का फ़ायदा उठाना चाहता है?
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के संस्थापक अजय श्रीवास्तव कहते हैं कि मोहम्मद यूनुस ने जानबूझकर पूर्वोत्तर भारत का ज़िक्र किया है.
अजय श्रीवास्तव कहते हैं, ''मोहम्मद यूनुस को पता है कि यह भारत का संवेदनशील इलाक़ा है. ऐसा लगता है कि चीन ने अपनी बात मोहम्मद यूनुस से कहलवाई है. चीन को आमंत्रित कर मोहम्मद यूनुस ने भारत को कुरेदने की कोशिश की है. यूनुस यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि बांग्लादेश के पास भारत के अलावा चीन भी विकल्प है. यूनुस चाइना कार्ड का इस्तेमाल कर रहे हैं और अगर ज़रूरत पड़ेगी तो इसे खेलेंगे भी.''
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पहले भी मोहम्मद यूनुस मिलना चाहते थे, लेकिन भारत ने कोई सकारात्मक जवाब नहीं दिया था.
लेकिन, इस बार मोहम्मद यूनुस जब चीन के दौरे से लौटे, तो थाईलैंड में पीएम मोदी भी मोहम्मद यूनुस से मिलने के लिए राज़ी हो गए.

द डिप्लोमैट मैगज़ीन की साउथ एशिया एडिटर ने लिखा है, ''बैंकॉक में पीएम मोदी के साथ मोहम्मद यूनुस की मुलाक़ात को बांग्लादेश में उनकी जीत के रूप में देखा गया. मोहम्मद यूनुस के चीन दौरे ने भारतीय प्रधानमंत्री को उनसे मिलने पर मजबूर कर दिया. लेकिन हालिया घटनाक्रम भारत के पक्ष में जाता दिख रहा है.''
''जब ट्रंप ने बांग्लादेश के ख़िलाफ़ 37 फ़ीसदी टैरिफ़ की घोषणा कर रखी है, तब भारत ने बांग्लादेश को मिली ट्रांसशिपमेंट सुविधा पर रोक लगा दी. ऐसा बैंकॉक में मोदी और यूनुस की मुलाक़ात के चंद दिनों बाद ही हुआ. भारत का यह फ़ैसला बांग्लादेश को अंतरराष्ट्रीय ट्रेड में चोट दे सकता है. भारत के फ़ैसले से बांग्लादेश का दक्षिण-पूर्वी एशिया, मध्य एशिया और यूरोपियन मार्केट में व्यापार प्रभावित होगा. बांग्लादेश के निर्यातकों के लिए सौदा और महंगा होगा, लेटलतीफ़ी बढ़ेगी और ट्रांसपोर्टेशन रूट को लेकर अनिश्चितता बढ़ेगी.''
सुधा रामचंद्रन ने लिखा है, ''नतीजतन कपड़े की फैक्ट्रियां बंद हो सकती हैं और हज़ारों लोग बेरोज़गार हो सकते हैं. भारत को लेकर मोहम्मद यूनुस के रुख़ से उन्हें चीन से तारीफ़ मिल सकती है और यहाँ तक कि बांग्लादेश के भीतर भी वाहवाही मिल सकती है. लेकिन, भारत के साथ बढ़ते अविश्वास के कारण उसे नुक़सान उठाना पड़ सकता है.''
अजय श्रीवास्तव कहते हैं कि बांग्लादेश के लिए चीन, भारत नहीं बन सकता है.
वह कहते हैं, ''बांग्लादेश को समझना चाहिए कि भारत के साथ जो ट्रेड उसका दिखता है, उसका बड़ा हिस्सा तो रोज़ की ज़रूरतों का है. ये चीन से संभव नहीं है. भारत ने बांग्लादेश को बड़ी रियायत दे रखी है. बांग्लादेश से सिरगेट और शराब को छोड़कर सारी चीज़ें ज़ीरो टैरिफ पर आती हैं. भारत ने 2006 में ऐसा एकतरफ़ा फ़ैसला किया था. बांग्लादेश के लोग चीन से ज़ीरो टैरिफ में फैब्रिक ख़रीदते हैं और भारत को कपड़े बनाकर भेज देते हैं. इससे हमारी लोकल इंडस्ट्री को परेशानी होती है, लेकिन सारी चीज़ों को सहते हुए भी हमने बांग्लादेश को यह सुविधा दे रखी है.''
अजय श्रीवास्तव कहते हैं, ''चीन जो ख़ुद नहीं कहना चाहता है, उसे कई बार बांग्लादेश और पाकिस्तान से कहलवा देता है. अगर भारत बांग्लादेश के उत्पादों पर टैरिफ फ्री का प्रावधान हटा दे, तो उनके लिए बड़ी मुश्किल हो जाएगी. यूरोप से दो सालों में ड्यूटी फ्री एक्सपोर्ट की सुविधा भी ख़त्म हो जाएगी क्योंकि बांग्लादेश भी विकासशील देशों की श्रेणी में आ जाएगा. ऐसे में बांग्लादेश की राहें बहुत आसान नहीं दिखती हैं.''
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित
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