देश की दो बड़ी सार्वजनिक वित्त संस्थाएं, पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन (PFC) और इंडियन रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी (IREDA), ने जेनसोल इंजीनियरिंग (Gensol Engineering) को दिए गए कुल 977 करोड़ रुपये के ऋण को लेकर अब कानूनी रास्ता अपनाने की तैयारी कर ली है. यह कदम SEBI की प्राथमिक जांच में सामने आए गंभीर खुलासों के बाद उठाया गया है, जिसमें कंपनी पर फंड डायवर्जन, दस्तावेजों की जालसाजी और ऋण खातों को लेकर धोखाधड़ी के आरोप लगे हैं.सेबी के 15 अप्रैल के आदेश में कहा गया कि जेनसोल के प्रमोटर अनमोल सिंह जग्गी और पुनीत सिंह जग्गी ने कंपनी के नाम पर लिए गए ऋण को व्यक्तिगत उपयोग में लगाया, जिसमें एक लग्जरी अपार्टमेंट और गोल्फ किट की खरीद भी शामिल है. आदेश में यह भी कहा गया कि 262 करोड़ रुपये की राशि का कोई स्पष्ट लेखा नहीं है.जेनसोल को दिए गए ऋण में से 663 करोड़ रुपये का उपयोग इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीद के लिए किया जाना था, जिन्हें कंपनी ने BluSmart नामक राइड-हेलिंग सेवा को लीज़ पर दिया. यह सेवा गुरुवार को अचानक बंद हो गई. BluSmart को BP Ventures जैसे बड़े निवेशकों का समर्थन प्राप्त है.जेनसोल ने IREDA और PFC को भेजे गए दस्तावेजों की जालसाजी कर यह दिखाने की कोशिश की कि उनकी ऋण अदायगी नियमित रूप से हो रही है. यही दस्तावेज़ बाद में क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों को भी भेजे गए, जिसके बाद जेनसोल की साख पर गंभीर सवाल खड़े हो गए. मार्च के पहले सप्ताह में CARE और ICRA ने कंपनी की रेटिंग 'D' (डिफॉल्ट) तक घटा दी.PFC और IREDA ने अब जेनसोल को शो-कॉज़ नोटिस भेजकर यह स्पष्ट करने को कहा है कि आखिर उनके नाम पर यह झूठे दस्तावेज़ कैसे प्रस्तुत किए गए. कंपनी के जवाब के आधार पर आगे की कानूनी रणनीति तय की जाएगी.हालांकि, दोनों संस्थाएं SEBI की फॉरेंसिक ऑडिट की रिपोर्ट का इंतज़ार कर रही हैं. अगर यह साबित हो गया कि वास्तव में फंड डायवर्जन हुआ है, तो इन ऋण खातों को धोखाधड़ी की श्रेणी में डालना पड़ेगा, जिससे IREDA को 625 करोड़ रुपये और PFC को 353 करोड़ रुपये की प्रोविजनिंग करनी होगी.ऋण संरचना को लेकर विशेषज्ञों का कहना है कि यह देखना होगा कि क्या ये ऋण विशेष प्रयोजन वाहनों (SPVs) से जुड़े थे या नहीं, क्योंकि EPC कंपनियां सामान्यतः इसी मॉडल का उपयोग करती हैं. आशिका स्टॉक ब्रोकिंग के रिसर्च प्रमुख आशुतोष मिश्रा ने कहा, “फंड डायवर्जन तो स्पष्ट है, लेकिन क्या इसे तकनीकी रूप से धोखाधड़ी कहा जा सकता है, यह देखने वाली बात है.”जेनसोल के प्रमोटर अनमोल सिंह जग्गी ने मार्च में दिए एक इंटरव्यू में दावा किया था कि कंपनी के ऋण खाते NPA नहीं हैं और कंपनी ने दस्तावेजों की जांच के लिए आंतरिक समिति बनाई है. उन्होंने 600 करोड़ रुपये की नई पूंजी डालने की योजना भी बताई थी. अब यह देखना शेष है कि कंपनी SEBI को क्या जवाब देती है और फॉरेंसिक ऑडिट के नतीजे क्या सामने लाते हैं.(अस्वीकरण: विशेषज्ञों द्वारा दी गई सिफारिशें, सुझाव, विचार और राय उनके अपने हैं. ये इकोनॉमिक टाइम्स हिन्दी के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं)
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