विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की नई रिपोर्ट के मुताबिक, 2023 में दुनियाभर में हर 6 में से 1 बैक्टीरियल इंफेक्शन एंटीबायोटिक दवाओं के लिए रेसिस्टेंट था। यानी इन इंफेक्शंस पर दवा का कोई असर नहीं हुआ। WHO की रिपोर्ट में कहा गया है कि एंटीबायोटिक रेसिस्टेंस सबसे ज्यादा यूरिनरी ट्रैक्ट और ब्लडस्ट्रीम इंफेक्शन वाले बैक्टीरिया में देखा गया। इसके मुकाबले गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल और यूरेजनिटल गोनोरिया संक्रमण में रेसिस्टेंस की दर कम थी।
दक्षिण-पूर्व एशिया और भारत में स्थिति गंभीरWHO के अनुसार, भारत समेत दक्षिण-पूर्व एशिया और ईस्टर्न मेडिटेरेनियन क्षेत्र में रेसिस्टेंस दर सबसे अधिक थी। करीब हर 3 में से 1 संक्रमण एंटीबायोटिक-रेसिस्टेंट पाया गया। वहीं अफ्रीका में यह अनुपात हर 5 में 1 था।
क्यों बढ़ रही है एंटीबायोटिक रेसिस्टेंसWHO ने बताया कि बैक्टीरिया बार-बार दवा के संपर्क में आने पर उस दवा के प्रति इम्यूनिटी विकसित कर लेते हैं। इसे एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंस कहते हैं। इससे इलाज की अवधि लंबी हो जाती है, मरीज हॉस्पिटल में लंबे समय तक रहते हैं और इससे पब्लिक हेल्थ सिस्टम पर बोझ बढ़ता है।
भारत में गंभीर है स्थिति2023 में भारत में करीब 41,400 ब्लडस्ट्रीम यानी खून में होने वाले संक्रमण दर्ज किए गए। इनमें से 99% मामले चार बैक्टीरिया Acinetobacter spp., E. coli, K. pneumoniae और S. aureus की वजह से थे। इन बैक्टीरिया में कई दवाओं के खिलाफ प्रतिरोध देखा गया। जैसे, Acinetobacter spp. से होने वाले संक्रमणों में 71% केस में ‘imipenem’ दवा असर नहीं दिखा और E. coli के 78% संक्रमण ‘cefotaxime’ दवा के लिए रेसिस्टेंट थे।
इसका मतलब यह है कि इन बैक्टीरिया को मारने के लिए कई आम दवाएं अब काम नहीं कर रही हैं, जिससे इलाज मुश्किल और खर्चीला हो सकता है।
क्या कहता है WHO का डेटा यह एनालिसिस WHO के GLASS (ग्लोबल एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंट एंड यूज सर्विलांस सिस्टम) से आया। 2023 में दुनियाभर में लगभग हर 6 लैब-कन्फर्म्ड बैक्टीरियल इंफेक्शन एंटीबायोटिक-रेसिस्टेंट थे। 2018-2023 के बीच रेसिस्टेंस बढ़कर 40% एंटीबायोटिक्स में सालाना 5-15% हो गई। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि रेसिस्टेंस की रेट मॉडर्न मेडिकल प्रगति से तेज है, जिससे दुनियाभर में लोगों के हेल्थ पर असर पड़ सकता है।
दक्षिण-पूर्व एशिया और भारत में स्थिति गंभीरWHO के अनुसार, भारत समेत दक्षिण-पूर्व एशिया और ईस्टर्न मेडिटेरेनियन क्षेत्र में रेसिस्टेंस दर सबसे अधिक थी। करीब हर 3 में से 1 संक्रमण एंटीबायोटिक-रेसिस्टेंट पाया गया। वहीं अफ्रीका में यह अनुपात हर 5 में 1 था।
क्यों बढ़ रही है एंटीबायोटिक रेसिस्टेंसWHO ने बताया कि बैक्टीरिया बार-बार दवा के संपर्क में आने पर उस दवा के प्रति इम्यूनिटी विकसित कर लेते हैं। इसे एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंस कहते हैं। इससे इलाज की अवधि लंबी हो जाती है, मरीज हॉस्पिटल में लंबे समय तक रहते हैं और इससे पब्लिक हेल्थ सिस्टम पर बोझ बढ़ता है।
भारत में गंभीर है स्थिति2023 में भारत में करीब 41,400 ब्लडस्ट्रीम यानी खून में होने वाले संक्रमण दर्ज किए गए। इनमें से 99% मामले चार बैक्टीरिया Acinetobacter spp., E. coli, K. pneumoniae और S. aureus की वजह से थे। इन बैक्टीरिया में कई दवाओं के खिलाफ प्रतिरोध देखा गया। जैसे, Acinetobacter spp. से होने वाले संक्रमणों में 71% केस में ‘imipenem’ दवा असर नहीं दिखा और E. coli के 78% संक्रमण ‘cefotaxime’ दवा के लिए रेसिस्टेंट थे।
इसका मतलब यह है कि इन बैक्टीरिया को मारने के लिए कई आम दवाएं अब काम नहीं कर रही हैं, जिससे इलाज मुश्किल और खर्चीला हो सकता है।
क्या कहता है WHO का डेटा यह एनालिसिस WHO के GLASS (ग्लोबल एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंट एंड यूज सर्विलांस सिस्टम) से आया। 2023 में दुनियाभर में लगभग हर 6 लैब-कन्फर्म्ड बैक्टीरियल इंफेक्शन एंटीबायोटिक-रेसिस्टेंट थे। 2018-2023 के बीच रेसिस्टेंस बढ़कर 40% एंटीबायोटिक्स में सालाना 5-15% हो गई। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि रेसिस्टेंस की रेट मॉडर्न मेडिकल प्रगति से तेज है, जिससे दुनियाभर में लोगों के हेल्थ पर असर पड़ सकता है।
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