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रमा एकादशी: जानें इस व्रत की पौराणिक कथा और इसके लाभ

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रमा एकादशी की कथा

रमा एकादशी की कथाImage Credit source: AI

एकादशी व्रत की कथा: हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है, जिसमें कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी, जिसे रमा एकादशी कहा जाता है, का विशेष स्थान है। यह दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित है। 'रमा' माता लक्ष्मी का एक नाम है, इसलिए इस दिन उनकी पूजा से घर में सुख, समृद्धि और सौभाग्य का आगमन होता है। मान्यता है कि जो भक्त इस दिन श्रद्धा और नियम से व्रत करते हैं, उनके सभी पाप समाप्त होते हैं और कष्टों से मुक्ति मिलती है। लेकिन, इस व्रत का फल तभी मिलता है जब विधिपूर्वक पूजा के बाद इसकी पावन कथा का पाठ या श्रवण किया जाए। आइए जानते हैं वह पौराणिक कथा, जिसे पढ़ने से जीवन में खुशहाली आती है और सभी संकट दूर होते हैं।

रमा एकादशी की पौराणिक कथा

पुराणों के अनुसार, त्रेतायुग में मुचुकुंद नामक एक धर्मपरायण राजा थे, जो भगवान विष्णु के भक्त थे। उनके राज्य में सभी लोग सुखी थे। राजा की एक अत्यंत सुंदर पत्नी थी, जिसका नाम चंद्रभगा था। राजा का एक पुत्र शंख था, जो दुर्भाग्यवश बुरे कर्मों में लिप्त रहता था। एक दिन, शंख ने एकादशी के दिन भोग-विलास किया और भोजन किया। यह देखकर चंद्रभगा बहुत दुखी हुईं। उन्होंने अपने पुत्र को समझाया कि एकादशी का व्रत अत्यंत पवित्र है, इसका अपमान नहीं करना चाहिए।

लेकिन पुत्र ने उनकी बात नहीं मानी और उसी रात उसकी मृत्यु हो गई। उसकी आत्मा नरक में चली गई। तब चंद्रभगा ने भगवान विष्णु की आराधना करते हुए रमा एकादशी का व्रत किया और भगवान से प्रार्थना की कि उसके पुत्र को मोक्ष मिले। भगवान विष्णु उसकी भक्ति से प्रसन्न हुए और कहा, 'हे सती! तुम्हारे व्रत के प्रभाव से तुम्हारे पुत्र को मुक्ति मिलेगी।' इसके बाद शंख को मोक्ष की प्राप्ति हुई और वह विष्णुलोक चला गया। तभी से माना जाता है कि रमा एकादशी का व्रत पापों का नाश करने और मुक्ति दिलाने वाला है.


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