हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने बुजुर्गों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है, जिससे उम्मीद की जा रही है कि बच्चे अपने माता-पिता का बेहतर ख्याल रखेंगे।
भारत में कई मामलों में देखा गया है कि बच्चे माता-पिता की संपत्ति अपने नाम कराने के बाद उनकी अनदेखी करते हैं और उन्हें अकेला छोड़ देते हैं। लेकिन अब कोर्ट के इस फैसले के बाद ऐसा करना संभव नहीं होगा।
कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि माता-पिता की संपत्ति और उपहारों के ट्रांसफर के लिए एक शर्त होगी कि बच्चे उन्हें देखभाल और जरूरतों को पूरा करें। यदि बच्चे ऐसा नहीं करते हैं, तो उन्हें संपत्ति और उपहार वापस करने होंगे।
कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ नागरिकों के हितों की रक्षा के लिए इस निर्णय को महत्वपूर्ण बताया। कई माता-पिता को उनके बच्चे संपत्ति और उपहार लेने के बाद नजरअंदाज कर देते हैं। कोर्ट ने कहा कि यदि बच्चे माता-पिता की देखभाल में असफल रहते हैं, तो उन्हें दी गई संपत्ति और उपहार रद्द किए जा सकते हैं।
जस्टिस सी टी रविकुमार और जस्टिस संजय करोल की बेंच ने कहा कि यह कानून उन बुजुर्गों के लिए सहायक है जो संयुक्त परिवार प्रणाली के समाप्त होने के बाद अकेले रह जाते हैं।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस निर्णय को भी खारिज कर दिया गया, जिसमें कहा गया था कि माता-पिता की देखभाल न करने पर संपत्ति वापस नहीं ली जा सकती।
बुजुर्गों को मिलने वाला लाभ
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून के उद्देश्य को पूरा करने के लिए उदार दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। अधिनियम के अनुसार, यदि कोई वरिष्ठ नागरिक अपनी संपत्ति अपने बच्चों को ट्रांसफर करता है, तो यह शर्त के साथ होगा कि बच्चे उनकी देखभाल करेंगे।
यदि बच्चे ऐसा नहीं करते हैं, तो संपत्ति का ट्रांसफर शून्य घोषित किया जाएगा।
हाल ही में एक मामले में, एक बुजुर्ग महिला ने याचिका दायर की थी कि उसके बेटे को दी गई संपत्ति रद्द की जाए, क्योंकि वह उसकी देखभाल नहीं कर रहा था। कोर्ट ने महिला की याचिका स्वीकार कर ली है।
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