New Delhi, 9 अक्टूबर . करवा चौथ का त्योहार भारतीय संस्कृति में बहुत ही खास महत्व रखता है. यह पर्व कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है. खासतौर पर यह व्रत सुहागिन महिलाओं द्वारा पति की लंबी उम्र और खुशहाली के लिए रखा जाता है. लेकिन आज के समय में केवल विवाहित महिलाएं ही नहीं, बल्कि कई कुंवारी कन्याएं भी इस व्रत का पालन करती हैं. वे इस दिन भगवान शिव, माता पार्वती और करवा माता की पूजा कर अपने लिए एक अच्छा जीवनसाथी पाने की कामना करती हैं.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कुंवारी लड़कियों के लिए करवा चौथ का व्रत रखने में कोई बाधा नहीं है, और उन्हें भी इस व्रत से शुभ फल की प्राप्ति होती है. इसलिए इस पर्व का महत्व केवल पति की लंबी आयु तक सीमित नहीं है, बल्कि यह विवाहिता और अविवाहित दोनों के लिए आशीर्वाद का प्रतीक है.
करवा चौथ के दिन महिलाएं निर्जला उपवास रखती हैं. सुहागिन महिलाएं अपने पति की खुशहाली और स्वास्थ्य की कामना के लिए यह व्रत करती हैं, जबकि कुंवारी कन्याएं इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष पूजा करती हैं. उनका मानना है कि इस पूजा और व्रत से उन्हें मनचाहा जीवनसाथी प्राप्त होता है. इस दिन कुंवारी लड़कियां पारंपरिक सोलह श्रृंगार का पालन नहीं करतीं, लेकिन वे नए और साफ कपड़े पहनकर इस व्रत की पवित्रता बनाए रखती हैं.
करवा चौथ की रात को चंद्रमा का उदय होना इस व्रत का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है. इस बार चंद्रमा रात 8 बजकर 13 मिनट पर निकलेगा, और तभी महिलाएं चंद्रमा को अर्घ्य देते हुए अपना व्रत खोल सकेंगी.
व्रत की परंपराओं में कुछ अंतर होते हैं जो कुंवारी कन्याओं और सुहागिन महिलाओं के लिए अलग-अलग हैं. सुहागिन महिलाएं छलनी के माध्यम से चंद्रमा को देखकर फिर अपने पति का चेहरा देखकर व्रत खोलती हैं, जबकि कुंवारी लड़कियां तारों को देखकर अपना व्रत खोलती हैं. हालांकि वे भी चंद्रमा को अर्घ्य दे सकती हैं.
इसके अलावा, कुंवारी लड़कियों के लिए सरगी की कोई खास रस्म नहीं होती, जो कि सुहागिन महिलाओं के लिए होती है. साथ ही, व्रत के दौरान कुंवारी लड़कियां दिन में एक बार फलाहार या पानी ले सकती हैं.
धार्मिक नियमों के अनुसार, इस दिन तामसिक और अशुद्ध चीजों से दूर रहना चाहिए ताकि व्रत सफल तरीके से पूर्ण हो सके.
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पीके/एबीएम
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