डॉनल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति पद की अपनी दूसरी पारी इस वादे के साथ शुरू की थी कि सत्ता में आने के “24 घंटे के भीतर” वह रूस-यूक्रेन युद्ध खत्म करा देंगे। 10 महीने बीत चुके हैं, और ट्रंप को शायद अब अपनी क्षमता की सीमाओं का सही एहसास हो चुका है।
इस वर्ष अक्तूबर में बुडापेस्ट में ट्रंप-पुतिन की तयशुदा बैठक विफल हो जाने के बाद जब मास्को ने वाशिंगटन के वर्तमान मोर्चे पर युद्ध स्थगित करने का प्रस्ताव नामंजूर कर दिया, उसने बताया कि रूस की चाहत कितनी गहरी है और व्लादिमीर पुतिन कितनी कुशलता से पूरे मामले को मनमाफिक घुमा रहे हैं।
लेकिन ट्रंप पर दोष मढ़ने के बजाय, इसे इस बात का संकेत मानना बेहतर होगा कि जब एक पक्ष मुकम्मल जीत पर अमादा हो, शांति स्थापित करना कितना मुश्किल होता है। यही हकीकत समझते हुए, ट्रंप ने अपना रुख बदलकर चीन के सहयोग पर भरोसा करने का फैसला किया।
ट्रंप का शांति प्रस्ताव सीधा-सादा था: लड़ाई रोको और संघर्ष को जहां है वहीं ‘विराम’ दे दो, ताकि भविष्य में बातचीत के लिए जगह बनी रहे। वह इसे जिंदगियां बचाने और भविष्य में समझौते का रास्ता बनाने के एक व्यावहारिक कदम के रूप में पेश करते रहे। रूस ने यह विचार सिरे से खारिज करते हुए दोहराया कि किसी भी युद्ध विराम में यूक्रेन का निरस्त्रीकरण, कब्जे वाले चार क्षेत्रों से वापसी और नाटो की महत्वाकांक्षाओं को त्यागना शामिल होना चाहिए।
मॉस्को ने वाशिंगटन को एक ज्ञापन भी भेजा जिसमें वह कठोर शर्तें दोहराई गईं, जिसके कारण अमेरिका को तयशुदा शिखर सम्मेलन रद्द करना पड़ा। पुतिन इस वार्ता को समझौते का रास्ता नहीं, अपने लाभ को मान्यता दिलाने का साधन मानते हैं।
गौर करना जरूरी है कि पुतिन बातचीत को पेश किस तरह करते हैं। क्रेमलिन का नजरिया सार्वजनिक दृढ़ता और प्रक्रिया पर सामरिक लचीलेपन का मिश्रण है, न कि सार पर। यह बातचीत की संभावनाओं का संकेत देता है, तो इसका जोर अटूट लक्ष्यों पर भी है। यहां उम्मीदों को आकार देने के लिए सैन्य विस्तार की बात है और कमी चक्रों का इस्तेमाल भी। यहां उच्च-स्तरीय हथियार परीक्षण और परमाणु अभ्यास के साथ वैसे प्रतीकात्मक इशारे भी हैं जो रेखांकित करते हैं कि उस पर कोई दबाव नहीं डाला जाएगा।
पिछले हफ्ते रूस ने परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बी ‘खाबारोव्स्क’ का प्रक्षेपण किया, जिसे पोसाइडन ‘कयामत का दिन’ परमाणु ड्रोन ले जाने के लिए डिजाइन किया गया है, और जो रणनीतिक प्रभुत्व पर मास्को द्वारा नए सिरे से जोर देने का प्रतीक है। इन कदमों का मकसद ट्रंप को निशाना बनाना नहीं, बल्कि उन पर दबाव बनाना है। विराम लेने की कोशिश करने वाले किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति को यही बुनियादी बातें झेलनी पड़ेंगी, जब तक कि पुतिन अपने मकसद को फिर से निर्धारित नहीं कर लेते या उन पर लगातार ऐसा दबाव नहीं पड़ता जो उनके इरादों को बदल दे।
इस पृष्ठभूमि में ट्रंप के विकल्प तीन लोगों के लिए खासे महत्वपूर्ण हैं। यूक्रेन के लिए- उन्होंने राष्ट्रपति व्लादिमीर जेलेंस्की के साथ बातचीत के रास्ते खुले रखने की कोशिश की है और साथ ही ऐसे विचारों पर भी जोर दिया है जो युद्ध की गति थाम सकें। यूरोप के लिए- जहां उन्होंने बार-बार सहयोगियों से सुरक्षा और वित्तीय बोझ को ज्यादा से ज्यादा वहन करने की अपेक्षा की है। रूस के लिए- जहां उन्होंने प्रतिबंधों की चेतावनियों और प्रतिष्ठा बचाने वाली व्यवस्थाओं के प्रस्तावों के बीच बारी-बारी से बातचीत की है, ताकि युद्ध विराम ज्यादा आकर्षक और गरिममय लगे। इन रास्तों पर संतुलन सर्वाधिक अच्छे समय में भी आसान नहीं होगा। ऐसा करना तब और भी मुश्किल हो जाता है जब यूरोप में अग्रिम मोर्चे अस्थिर हों और घरेलू राजनीति इस कदर विवादास्पद।
ट्रंप ने अपनी ओर से रक्तपात समाप्त करने और वार्ता के लिए एक संभव प्रस्थान बिंदु तलाशने पर ध्यान केन्द्रित रखने की कोशिश की है। वह लगातार कहते रहे हैं कि अंतहीन युद्ध से किसी को कोई लाभ नहीं होता और प्रमुख शक्तियों को दोनों पक्षों को बातचीत की मेज पर लाने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल करना चाहिए। उनकी चुनौती इस आकांक्षा को रूसी नेतृत्व पर दबाव बनाने में बदलने की रही है, जिसकी नजर में किसी भी रियायत का मतलब कमजोरी है।
वाशिंगटन द्वारा रूस की ऊर्जा दिग्गज कंपनियों पर नए प्रतिबंध लगाने के कुछ ही दिनों बाद, पुतिन ने परमाणु अभ्यास किया और एक नई परमाणु-संचालित मिसाइल के सफल परीक्षण की घोषणा की, और उसकी ‘असीमित मारक क्षमता’ का बढ़-चढ़कर बखान किया। संदेश बहुत साफ था: मास्को किसी दबाव के आगे झुकने वाला नहीं है और वह वार्ता को अपने व्यापक सैन्य और रणनीतिक एजेंडे से जोड़ना जारी रखेगा।
नाटो और यूरोप अब खुद को इस जटिल माहौल के साथ तालमेल बिठाते हुए पा रहे हैं। पूर्वी यूरोप में सैनिकों की सीमित कटौती यानी जर्मनी, रोमानिया और पोलैंड से लगभग 700 सैनिक हटाने की अमेरिकी घोषणा ने चिंताएं पैदा की हैं, लेकिन आधिकारिक तौर पर इसे एक ‘संतुलित रुख’ का हिस्सा बताया जा रहा है, जो मज़बूत यूरोपीय क्षमताओं का प्रतीक है। इस बीच, यूरोपीय सरकारें यूक्रेन की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए अपने प्रयासों को दोगुना कर रही हैं।
फ्रांस और जर्मनी नई सुरक्षा गारंटी और यहां तक कि युद्ध विराम की स्थिति में भविष्य में शांति स्थापना चाहते हैं। फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने तीन स्तंभों पर आधारित एक योजना बनाई है और इसके पीछे दो दर्जन से ज्यादा देशों को जोड़ा है: यूक्रेन की सेना को मजबूत करना, यूरोपीय नेतृत्व वाला सुरक्षा बल तैयार करना और अमेरिकी सुरक्षा जाल बनाए रखना। चुनौती यह है कि जैसे-जैसे संघर्ष आगे बढ़ता है, इन तीनों को किस तरह एकजुट रखा जाए।
हमेशा अवसरवादी रहे पुतिन अटलांटिक पर किसी भी मतभेद का लाभ उठाने की कोशिश में रहते हैं। वह यूरोप पर ‘उन्माद’ का आरोप लगाते हैं, हंगरी के विक्टर ओरबान जैसे सहानुभूति रखने वाले नेताओं को अतिरिक्त सौदे की पेशकश करते हैं, और गठबंधन की एकता तोड़ने के लिए दुष्प्रचार को बढ़ावा देते हैं। ट्रंप के साथ बातचीत खुली रखकर, उन्हें सैन्य अभियान जारी रखते हुए भी अपनी उपस्थिति और वैधता का आभास होता है। विलंब मास्को के युद्धक्षेत्र के गुणा-गणित के लिए फायदेमंद है। फिर भी, ट्रंप द्वारा बातचीत के लिए बनाए गए दबाव ने भले ही अब तक इसके नतीजे निराशाजनक रहे हों, अंतरराष्ट्रीय ध्यान युद्ध समाप्त करने की आवश्यकता पर केन्द्रित रखा है।
ट्रंप के दृष्टिकोण का उल्लेखनीय आयाम यह भी है कि उनकी नजर में युद्ध का समाधान चीन को संतुलन में शामिल करने पर निर्भर हो सकता है। अक्तूबर में शी जिनपिंग के साथ अपनी बैठक के दौरान, उन्होंने जोर देकर कहा कि बीजिंग “हमारी मदद करेगा और हम यूक्रेन पर मिलकर काम करेंगे।” ऐसे संघर्ष में जहां चीन रूस की मुख्य आर्थिक जीवन रेखा बना हुआ है, किसी भी सार्थक कूटनीतिक प्रगति के लिए संभवतः चीनी भागीदारी की जरूरत होगी। लगता है कि ट्रंप समझने लगे हैं कि चीन की भागीदारी के बिना, केवल प्रतिबंधों की धमकी से मास्को की गुणा-गणित पर फर्क नहीं पड़ने वाला है।
यूक्रेन, हालांकि अब भी लचीला है, पर उसकी थकान दिखने लगी है। उसने पोक्रोवस्क जैसे प्रमुख शहरों को रूसी हमलों के बीच लगातार सुरक्षित रखा है, जबकि उसके नेता एक और भीषण सर्दी से पहले अतिरिक्त पश्चिमी वायु रक्षा सहायता और ऊर्जा सुरक्षा पर जोर दे रहे हैं। मिसाइल और ड्रोन हमलों की हर नई लहर फिर-फिर अहसास कराती है कि शांति अब भी बहुत दूर है। यूक्रेन वाले युद्ध का खात्मा चाहते हैं, लेकिन अपनी संप्रभुता से समझौते की कीमत पर नहीं। जाहिर है, ट्रंप सहित मध्यस्थों के लिए बड़ी चुनौती मास्को की महत्वाकांक्षाओं और कीव की संप्रभुता बनाए रखने की अटूट इच्छाशक्ति के बीच एक अदृश्य साझा आधार की तलाश है।
यूक्रेन अपने ग्रिड पर सर्दियों के हमलों के लिए तैयारी कर रहा है, और सर्वाधिक प्रभावित इलाकों से नागरिकों को स्थानांतरित करते हुए थकी हुई सैन्य इकाइयों को बदल रहा है। रूस यूक्रेन की रक्षा में कमजोरियों का परीक्षण करते हुए सामरिक लाभ की तलाश में है, जिसे वह सौदेबाजी की ताकत में तब्दील कर सके। यूरोप समर्थन और प्रतिरोध के सर्वोत्तम संयोजन पर विचार-विमर्श करते हुए अपनी सुरक्षा प्रणाली को मजबूत कर रहा है। राष्ट्रपति ट्रंप किसी समझौते पर पहुंचने के लिए नए दबाव की तलाश में हैं।
बुडापेस्ट योजना का पतन कूटनीति का अंत नहीं माना जाना चाहिए, लेकिन निश्चित रूप से यह एक हकीकत तो है ही कि वास्तविक तनाव कम करना कितना मुश्किल होगा।
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