नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर आपत्ति जताई है, जिसमें राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए विधेयकों पर निर्णय लेने की समय सीमा तय की गई है। सरकार का कहना है कि अदालतों की ओर से विधानसभाओं से पारित विधेयकों पर सहमति देने या रोकने की प्रक्रिया की न्यायिक समीक्षा से 'राज्य के अंगों के बीच संवैधानिक संतुलन अस्थिर हो सकता है।' सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करके राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए समय सीमा तय की है। सरकार का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने संविधान में संशोधन करने की शक्ति अपने हाथ में ले ली है।
केंद्र सरकार ने कहा कि SC ने 10 तमिलनाडु विधेयकों को 'डीम्ड एसेंट' देने का जो फैसला किया है, वह गलत है। सरकार के अनुसार, 'अनुच्छेद 142 अदालत को 'डीम्ड एसेंट' की अवधारणा बनाने का अधिकार नहीं देता है, जिससे संवैधानिक और विधायी प्रक्रिया उल्टी हो जाए।' इसका मतलब है कि सुप्रीम कोर्ट संविधान में बदलाव नहीं कर सकता।
सरकार का मानना है कि SC का यह फैसला संविधान के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर राष्ट्रपति या राज्यपाल समय पर किसी विधेयक पर फैसला नहीं लेते हैं, तो उसे पास मान लिया जाएगा। केंद्र सरकार का कहना है कि यह संविधान के नियमों के विरुद्ध है। इससे राष्ट्रपति और राज्यपालों की शक्तियों को कम किया जा रहा है। सरकार और SC के बीच इस मुद्दे पर विवाद चल रहा है।
केंद्र सरकार ने कहा कि SC ने 10 तमिलनाडु विधेयकों को 'डीम्ड एसेंट' देने का जो फैसला किया है, वह गलत है। सरकार के अनुसार, 'अनुच्छेद 142 अदालत को 'डीम्ड एसेंट' की अवधारणा बनाने का अधिकार नहीं देता है, जिससे संवैधानिक और विधायी प्रक्रिया उल्टी हो जाए।' इसका मतलब है कि सुप्रीम कोर्ट संविधान में बदलाव नहीं कर सकता।
सरकार का मानना है कि SC का यह फैसला संविधान के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर राष्ट्रपति या राज्यपाल समय पर किसी विधेयक पर फैसला नहीं लेते हैं, तो उसे पास मान लिया जाएगा। केंद्र सरकार का कहना है कि यह संविधान के नियमों के विरुद्ध है। इससे राष्ट्रपति और राज्यपालों की शक्तियों को कम किया जा रहा है। सरकार और SC के बीच इस मुद्दे पर विवाद चल रहा है।
- सरकार ने कहा कि न्यायिक समीक्षा को सहमति देने की प्रक्रिया पर लागू नहीं किया जा सकता, क्योंकि सहमति देते समय कई ऐसे कारक होते हैं जिनका कोई कानूनी या संवैधानिक समानांतर नहीं है। सहमति की अनूठी प्रकृति को देखते हुए, न्यायिक दृष्टिकोण भी अनूठा होना चाहिए।
- केंद्र सरकार का कहना है कि संविधान से ही शासन के तीनों अंगों को शक्ति मिलती है। किसी भी अंग को दूसरे से ऊपर नहीं माना जा सकता। इससे न्यायपालिका को यह अधिकार नहीं मिल जाता कि वह राज्यपाल के उच्च पद को कमतर आंके। राष्ट्रपति और राज्यपालों के फैसलों से जुड़े मुद्दे राजनीतिक जवाबों के हकदार हैं, जरूरी नहीं कि न्यायिक जवाबों के।
- सरकार ने कहा कि तीनों अंगों के कार्यों में कुछ राजनीतिक सवाल उठ सकते हैं, जिनके जवाब संविधान के तहत लोकतांत्रिक तरीके से दिए जाने चाहिए। न्यायपालिका को हर समस्या का समाधान खोजने की जल्दबाजी में शक्तियों के पृथक्करण के संवैधानिक सिद्धांत को नहीं भूलना चाहिए।
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