नई दिल्ली: भारत की इकोनॉमिक ग्रोथ का अगला टर्निंग पॉइंट खेतों के रास्ते से होकर गुजरेगा। देश ने 2047 तक 10 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य रखा है। इसे हासिल करने के लिए कृषि क्षेत्र को अपना आर्थिक योगदान दोगुना करके लगभग 450 अरब डॉलर से 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाना होगा। यह बात उद्योग विशेषज्ञों ने कही। उनके मुताबिक, भले ही भारत की लगभग 46% आबादी खेती-बाड़ी से जुड़ी है। लेकिन, जीडीपी में इसका योगदान सिर्फ 15% के आसपास है। यह दिखाता है कि नीतिगत सुधारों और निजी निवेश की सख्त जरूरत है।
कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) की कृषि पर उत्तरी क्षेत्रीय समिति के चेयरमैन अजय राणा ने एक उद्योग सम्मेलन में कहा, 'अगर हम 10 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना चाहते हैं तो कृषि का हिस्सा लगभग 450 अरब डॉलर से बढ़कर 1 ट्रिलियन डॉलर होना चाहिए।'
सही नीतियां कैसे बढ़ाती हैं प्रोडक्टिविटी?राणा फेडरेशन ऑफ सीड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया के भी चेयरमैन हैं। उन्होंने हाइब्रिड मक्के को अपनाने का उदाहरण दिया। बताया कि दो दशक पहले जहां इसका इस्तेमाल सिर्फ 15-20 फीसदी था, वहीं अब यह 90 फीसदी तक पहुंच गया है। यह दिखाता है कि सही नीतियों के साथ तकनीक उत्पादकता बढ़ा सकती है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि राज्यों की नीतियां लगातार बदलती रहती हैं। फसलों से जुड़ी तकनीकों पर अचानक रोक लगा दी जाती है। इससे निवेश करने वाले हिचकिचाते हैं।
यह सम्मेलन सीआईआई की ओर से आयोजित किया गया था। इसका शीर्षक था 'कृषि में विकास को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत सुधार'। इसमें नीति निर्माताओं, उद्योग जगत के लीडर्स और वैज्ञानिकों ने मिलकर सुधारों पर चर्चा की। विशेषज्ञों ने एक ऐसी नीतिगत व्यवस्था की मांग की जो विज्ञान पर आधारित हो। साथ ही, उन्होंने केंद्र और राज्यों के नियमों को एक जैसा बनाने और फसल सुरक्षा उत्पादों के लिए समय पर मंजूरी देने के लिए राष्ट्रीय कृषि प्रौद्योगिकी परिषद बनाने का सुझाव दिया।
फेडरेशन ऑफ सीड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर राघवन संपतकुमार ने सुधारों में तीन बड़ी रुकावटें बताईं। इनमें जनसमूह का दबाव, अचानक आने वाली बाधाएं और कानूनों की मनमानी व्याख्या शामिल हैं। संपतकुमार ने कहा, 'विज्ञान को सनसनी पर हावी होना चाहिए। नीतिगत फैसले जनसमूह के दबाव या बिना वैज्ञानिक आधार के अचानक राज्यों की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों से तय नहीं होने चाहिए।'
एक्सपर्ट्स ने दिया सुझाव
उद्योग जगत के प्रमुखों का मानना है कि अगर एक जैसी और विज्ञान पर आधारित व्यवस्था बनाई जाए तो कृषि-इनपुट क्षेत्र का मौजूदा 60 अरब डॉलर का मूल्य 10 साल में दोगुना हो सकता है। इससे भारतीय कृषि राष्ट्रीय विकास का एक ट्रिलियन डॉलर का स्तंभ बन सकती है। उन्होंने यह भी बताया कि कृषि-इनपुट क्षेत्र अभी 60 अरब डॉलर का है। इसमें बीज, उर्वरक और कीटनाशक जैसी चीजें आती हैं। एक मजबूत और वैज्ञानिक नीति से यह अगले 10 सालों में 120 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। यह न केवल किसानों की आय बढ़ाएगा बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करेगा।
विशेषज्ञों ने इस बात पर जोर दिया कि किसानों को आधुनिक तकनीक और बेहतर बीजों तक पहुंच मिलनी चाहिए। इसके लिए सरकारी नीतियों को स्थिर और पारदर्शी होना चाहिए। अचानक प्रतिबंध लगाने से किसानों और कंपनियों दोनों को नुकसान होता है। एक राष्ट्रीय परिषद इन मुद्दों को सुलझाने में मदद कर सकती है। यह परिषद केंद्र और राज्यों के बीच तालमेल बैठाएगी। साथ ही नई तकनीकों को मंजूरी देने की प्रक्रिया को तेज करेगी। इससे भारत कृषि क्षेत्र में एक वैश्विक शक्ति बन सकता है।
कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) की कृषि पर उत्तरी क्षेत्रीय समिति के चेयरमैन अजय राणा ने एक उद्योग सम्मेलन में कहा, 'अगर हम 10 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना चाहते हैं तो कृषि का हिस्सा लगभग 450 अरब डॉलर से बढ़कर 1 ट्रिलियन डॉलर होना चाहिए।'
सही नीतियां कैसे बढ़ाती हैं प्रोडक्टिविटी?राणा फेडरेशन ऑफ सीड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया के भी चेयरमैन हैं। उन्होंने हाइब्रिड मक्के को अपनाने का उदाहरण दिया। बताया कि दो दशक पहले जहां इसका इस्तेमाल सिर्फ 15-20 फीसदी था, वहीं अब यह 90 फीसदी तक पहुंच गया है। यह दिखाता है कि सही नीतियों के साथ तकनीक उत्पादकता बढ़ा सकती है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि राज्यों की नीतियां लगातार बदलती रहती हैं। फसलों से जुड़ी तकनीकों पर अचानक रोक लगा दी जाती है। इससे निवेश करने वाले हिचकिचाते हैं।
यह सम्मेलन सीआईआई की ओर से आयोजित किया गया था। इसका शीर्षक था 'कृषि में विकास को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत सुधार'। इसमें नीति निर्माताओं, उद्योग जगत के लीडर्स और वैज्ञानिकों ने मिलकर सुधारों पर चर्चा की। विशेषज्ञों ने एक ऐसी नीतिगत व्यवस्था की मांग की जो विज्ञान पर आधारित हो। साथ ही, उन्होंने केंद्र और राज्यों के नियमों को एक जैसा बनाने और फसल सुरक्षा उत्पादों के लिए समय पर मंजूरी देने के लिए राष्ट्रीय कृषि प्रौद्योगिकी परिषद बनाने का सुझाव दिया।
फेडरेशन ऑफ सीड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर राघवन संपतकुमार ने सुधारों में तीन बड़ी रुकावटें बताईं। इनमें जनसमूह का दबाव, अचानक आने वाली बाधाएं और कानूनों की मनमानी व्याख्या शामिल हैं। संपतकुमार ने कहा, 'विज्ञान को सनसनी पर हावी होना चाहिए। नीतिगत फैसले जनसमूह के दबाव या बिना वैज्ञानिक आधार के अचानक राज्यों की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों से तय नहीं होने चाहिए।'
एक्सपर्ट्स ने दिया सुझाव
उद्योग जगत के प्रमुखों का मानना है कि अगर एक जैसी और विज्ञान पर आधारित व्यवस्था बनाई जाए तो कृषि-इनपुट क्षेत्र का मौजूदा 60 अरब डॉलर का मूल्य 10 साल में दोगुना हो सकता है। इससे भारतीय कृषि राष्ट्रीय विकास का एक ट्रिलियन डॉलर का स्तंभ बन सकती है। उन्होंने यह भी बताया कि कृषि-इनपुट क्षेत्र अभी 60 अरब डॉलर का है। इसमें बीज, उर्वरक और कीटनाशक जैसी चीजें आती हैं। एक मजबूत और वैज्ञानिक नीति से यह अगले 10 सालों में 120 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। यह न केवल किसानों की आय बढ़ाएगा बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करेगा।
विशेषज्ञों ने इस बात पर जोर दिया कि किसानों को आधुनिक तकनीक और बेहतर बीजों तक पहुंच मिलनी चाहिए। इसके लिए सरकारी नीतियों को स्थिर और पारदर्शी होना चाहिए। अचानक प्रतिबंध लगाने से किसानों और कंपनियों दोनों को नुकसान होता है। एक राष्ट्रीय परिषद इन मुद्दों को सुलझाने में मदद कर सकती है। यह परिषद केंद्र और राज्यों के बीच तालमेल बैठाएगी। साथ ही नई तकनीकों को मंजूरी देने की प्रक्रिया को तेज करेगी। इससे भारत कृषि क्षेत्र में एक वैश्विक शक्ति बन सकता है।
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