आज हम AI के दौर में उस स्थिति में पहुंच चुके हैं कि सोशल मीडिया पर हम जो कुछ भी देख रहे हैं वो सच है या नहीं कहा नहीं जा सकता। डीपफेक वीडियो, फर्जी खबरें और मशहूर लोगों की नकली वॉइस ही वो वजहें हैं कि इंटरनेट पर असली-नकली का फर्क कर पाना मुश्किल हो गया है। इस स्थिति पर काबू पाने के लिए चीन अपने यहां के सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स पर नकेल कसने वाला है। दरअसल अब चीनी कंटेंट क्रिएटर्स को AI से बनाए किसी भी कंटेंट पर साफ-साफ लिखना होगा कि उस कंटेंट को AI से बनाया गया है। चीन का कहना है कि गलत सूचना, कॉपीराइट और अफवाहों को रोकने के लिए इस नियम को लाया गया है।
क्या हैं नया नियम?दरअसल चीन के CAC यानी कि साइबरस्पेस एडमिनिस्ट्रेशन के बनाए नए नियमों के अनुसार अब कंटेंट क्रिएटर्स को अपने हर उस कंटेंट पर साफ-साफ लिखना होगा कि उनका कंटेंट AI से बना है या नहीं। इसके अलावा सर्विस प्रोवाइडर्स को भी 6 महीने तक इस तरह के कंटेंट का रिकॉर्ड रखना होगा। साइबरस्पेस एडमिनिस्ट्रेशन ने साफ किया है कि अगर कोई कंटेंट पर से AI लेबल को हटाता है या फिर उसमें छेड़छाड़ करता है, तो उस पर कार्रवाई की जाएगी। CAC ने इसे 2025 के अपने "Qinglang" यानी कि “साफ और उज्जवल” नाम के अभियान का हिस्सा बताया है। इस अभियान का मकसद इंटरनेट को साफ-सुथरा बनाना है, जो कि AI के गलत इस्तेमाल पर लगाम लगा कर किया जाएगा।
दुनिया भर में क्या हो रहा है?इस तरह के नियमों की मांग पूरी दुनिया में उठ रही है। दरअसल AI ने इतनी तेजी से तरक्की की है कि AI से बने वीडियो और फोटो बिलकुल असली लगने लगे हैं। चीन की तरह ही यूरोपियन यूनियन ने भी AI एक्ट बनाया है। इसमें भी AI कंटेंट के लिए लेबलिंग को जरूरी बना दिया गया है। इसे लेकर अमेरिका और ब्रिटेन भी कानून बना रहे हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक एक्सपर्ट्स का कहना है कि कंटेंट पर लेबल लगाना भर काफी नहीं है। उनके अनुसार लाइव स्ट्रीम और वॉयस कॉल जैसे रियल-टाइम AI एप्लिकेशन को नियंत्रित करना मुश्किल है। दरअसल इसके पीछे दलील दी जाती है कि वॉटरमार्क और मेटाडेटा आसानी से बदले या हटाए जा सकते हैं।
भारत में AI को लेकर क्या स्थिति है?AI को लेकर भारत में फिलहाल कोई कानून नहीं है। हालांकि सरकार ने कुछ जरूरी फ्रेमवर्क लॉन्च किए हैं। इनमें National Strategy for AI (2018), Principles for Responsible AI (2021) और Operationalising Principles for Responsible AI शामिल हैं। इनका मकसद यही है कि पारदर्शी और जवाबदेह AI विकास को बढ़ावा दिया जाए। भले इसकी किसी सख्त कानून के साथ तुलना नहीं की जा सकती लेकिन इस फ्रेमवर्क को AI के जिम्मेदार इस्तेमाल की दिशा में बढ़ाए गए एक कदम के तौर पर जरूर देखा जा सकता है।
क्या हैं नया नियम?दरअसल चीन के CAC यानी कि साइबरस्पेस एडमिनिस्ट्रेशन के बनाए नए नियमों के अनुसार अब कंटेंट क्रिएटर्स को अपने हर उस कंटेंट पर साफ-साफ लिखना होगा कि उनका कंटेंट AI से बना है या नहीं। इसके अलावा सर्विस प्रोवाइडर्स को भी 6 महीने तक इस तरह के कंटेंट का रिकॉर्ड रखना होगा। साइबरस्पेस एडमिनिस्ट्रेशन ने साफ किया है कि अगर कोई कंटेंट पर से AI लेबल को हटाता है या फिर उसमें छेड़छाड़ करता है, तो उस पर कार्रवाई की जाएगी। CAC ने इसे 2025 के अपने "Qinglang" यानी कि “साफ और उज्जवल” नाम के अभियान का हिस्सा बताया है। इस अभियान का मकसद इंटरनेट को साफ-सुथरा बनाना है, जो कि AI के गलत इस्तेमाल पर लगाम लगा कर किया जाएगा।
दुनिया भर में क्या हो रहा है?इस तरह के नियमों की मांग पूरी दुनिया में उठ रही है। दरअसल AI ने इतनी तेजी से तरक्की की है कि AI से बने वीडियो और फोटो बिलकुल असली लगने लगे हैं। चीन की तरह ही यूरोपियन यूनियन ने भी AI एक्ट बनाया है। इसमें भी AI कंटेंट के लिए लेबलिंग को जरूरी बना दिया गया है। इसे लेकर अमेरिका और ब्रिटेन भी कानून बना रहे हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक एक्सपर्ट्स का कहना है कि कंटेंट पर लेबल लगाना भर काफी नहीं है। उनके अनुसार लाइव स्ट्रीम और वॉयस कॉल जैसे रियल-टाइम AI एप्लिकेशन को नियंत्रित करना मुश्किल है। दरअसल इसके पीछे दलील दी जाती है कि वॉटरमार्क और मेटाडेटा आसानी से बदले या हटाए जा सकते हैं।
भारत में AI को लेकर क्या स्थिति है?AI को लेकर भारत में फिलहाल कोई कानून नहीं है। हालांकि सरकार ने कुछ जरूरी फ्रेमवर्क लॉन्च किए हैं। इनमें National Strategy for AI (2018), Principles for Responsible AI (2021) और Operationalising Principles for Responsible AI शामिल हैं। इनका मकसद यही है कि पारदर्शी और जवाबदेह AI विकास को बढ़ावा दिया जाए। भले इसकी किसी सख्त कानून के साथ तुलना नहीं की जा सकती लेकिन इस फ्रेमवर्क को AI के जिम्मेदार इस्तेमाल की दिशा में बढ़ाए गए एक कदम के तौर पर जरूर देखा जा सकता है।
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