नई दिल्ली: देश के सबसे बड़े औद्योगिक घराने टाटा ग्रुप में सबकुछ ठीक नहीं है। ग्रुप में आतंरिक कलह का मामला अब दिल्ली तक पहुंच गया है। मंगलवार को गृह मंत्री अमित शाह के घर पर हुई 45 मिनट की एक अहम बैठक में केंद्र सरकार ने टाटा ग्रुप के शीर्ष नेतृत्व को एक कड़ा संदेश दिया है। सरकार चाहती है कि टाटा ट्रस्ट्स में स्थिरता लाई जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि अंदरूनी कलह टाटा संस को प्रभावित न करे। टाटा संस टाटा ग्रुप की होल्डिंग कंपनी है और इस कंपनी में टाटा ट्रस्ट्स का मैज्योरिटी स्टेक है।
शाह और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने टाटा ट्रस्ट्स के चेयरमैन नवल टाटा, वाइस-चेयरमैन वेणु श्रीनिवासन, टाटा संस के चेयरमैन एन. चंद्रशेखरन और ट्रस्टी डेरियस खंबाटा से मुलाकात की। इस मुलाकात का मकसद ग्रुप की स्थिरता बनाए रखना है। इससे पहले सोमवार को ईटी ने खबर दी थी कि दो वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री टाटा ग्रुप के टॉप अधिकारियों से मिलेंगे। वे टाटा ट्रस्ट्स में चल रही कलह और टाटा संस को पब्लिक लिस्ट करने के मुद्दे पर चर्चा करेंगे।
सरकार का सख्त निर्देश
सूत्रों के मुताबिक सरकार ने टाटा के अधिकारियों को सख्त कदम उठाने के लिए प्रोत्साहित किया गया है। सरकार की तरफ से साफ संकेत है कि अगर किसी ट्रस्टी के फैसलों से ग्रुप के कामकाज पर खतरा आता है, तो उसे हटाया जा सकता है। मीटिंग में टाटा संस की लिस्टिंग पर भी बात हुई। आरबीआई ने टाटा संस को अपर लेयर एनबीएफसी के तौर पर क्लासिफाई किया है। नियमों के मुताबिक इसे 30 सितंबर तक लिस्ट हो जाना चाहिए था।
मीटिंग में टाटा संस के दूसरे सबसे बड़े शेयरधारक शापूरजी पल्लोनजी ग्रुप के लिए लिक्विडिटी का रास्ता निकालने पर भी चर्चा हुई। हालांकि यह साफ नहीं हुआ कि सरकार ने इस मामले में कोई खास निर्देश दिया है या नहीं। सूत्रों के मुताबिक मंत्रियों ने इस अंदरूनी उथल-पुथल पर चिंता जताई और उन ट्रस्टियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने को कहा जो झगड़े को बढ़ावा दे रहे हैं। सरकार को इस बात की गहरी चिंता है कि ट्रस्ट्स में चल रहा झगड़ा टाटा संस और ग्रुप की अन्य कंपनियों के प्रबंधन पर भी असर डाल सकता है।
क्या है मामला?सरकार का कहना है कि टाटा ट्रस्ट्स की टाटा संस में बहुमत हिस्सेदारी होने, ग्रुप के बड़े आकार, इकॉनमी में इसके महत्व और देश के प्रति इसके योगदान को देखते हुए, ट्रस्ट्स की एक 'सार्वजनिक जिम्मेदारी' है। इसलिए ट्रस्ट्स के अंदर के मतभेदों को आपस में और चुपचाप सुलझाना चाहिए। सरकार का मानना है कि टाटा ट्रस्ट्स के अंदरूनी मामले ऐसे होने चाहिए कि वे बाहर से किसी को दिखाई न दें और ग्रुप की प्रतिष्ठा को कोई नुकसान न पहुंचे।
दरअसल ट्रस्टी इस बात पर बंटे हुए हैं कि टाटा ट्र्स्ट्स का टाटा संस पर नियंत्रण कैसे होना चाहिए? टाटा संस के बोर्ड में ट्रस्ट की तरफ से कौन-कौन डायरेक्टर बनेंगे? इस बात पर भी सहमति नहीं है कि बोर्ड की बैठकों में हुई चर्चा की कितनी जानकारी बाकी ट्रस्टियों के साथ साझा की जाए। सबसे ज्यादा चिंता इस बात से बढ़ी है कि टाटा संस के नॉमिनी डायरेक्टर विजय सिंह को कैसे हटाया गया। खासकर एक ट्रस्टी का व्यवहार बहुत ही परेशान करने वाला रहा है। अब इसकी जांच हो रही है।
शाह और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने टाटा ट्रस्ट्स के चेयरमैन नवल टाटा, वाइस-चेयरमैन वेणु श्रीनिवासन, टाटा संस के चेयरमैन एन. चंद्रशेखरन और ट्रस्टी डेरियस खंबाटा से मुलाकात की। इस मुलाकात का मकसद ग्रुप की स्थिरता बनाए रखना है। इससे पहले सोमवार को ईटी ने खबर दी थी कि दो वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री टाटा ग्रुप के टॉप अधिकारियों से मिलेंगे। वे टाटा ट्रस्ट्स में चल रही कलह और टाटा संस को पब्लिक लिस्ट करने के मुद्दे पर चर्चा करेंगे।
सरकार का सख्त निर्देश
सूत्रों के मुताबिक सरकार ने टाटा के अधिकारियों को सख्त कदम उठाने के लिए प्रोत्साहित किया गया है। सरकार की तरफ से साफ संकेत है कि अगर किसी ट्रस्टी के फैसलों से ग्रुप के कामकाज पर खतरा आता है, तो उसे हटाया जा सकता है। मीटिंग में टाटा संस की लिस्टिंग पर भी बात हुई। आरबीआई ने टाटा संस को अपर लेयर एनबीएफसी के तौर पर क्लासिफाई किया है। नियमों के मुताबिक इसे 30 सितंबर तक लिस्ट हो जाना चाहिए था।
मीटिंग में टाटा संस के दूसरे सबसे बड़े शेयरधारक शापूरजी पल्लोनजी ग्रुप के लिए लिक्विडिटी का रास्ता निकालने पर भी चर्चा हुई। हालांकि यह साफ नहीं हुआ कि सरकार ने इस मामले में कोई खास निर्देश दिया है या नहीं। सूत्रों के मुताबिक मंत्रियों ने इस अंदरूनी उथल-पुथल पर चिंता जताई और उन ट्रस्टियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने को कहा जो झगड़े को बढ़ावा दे रहे हैं। सरकार को इस बात की गहरी चिंता है कि ट्रस्ट्स में चल रहा झगड़ा टाटा संस और ग्रुप की अन्य कंपनियों के प्रबंधन पर भी असर डाल सकता है।
क्या है मामला?सरकार का कहना है कि टाटा ट्रस्ट्स की टाटा संस में बहुमत हिस्सेदारी होने, ग्रुप के बड़े आकार, इकॉनमी में इसके महत्व और देश के प्रति इसके योगदान को देखते हुए, ट्रस्ट्स की एक 'सार्वजनिक जिम्मेदारी' है। इसलिए ट्रस्ट्स के अंदर के मतभेदों को आपस में और चुपचाप सुलझाना चाहिए। सरकार का मानना है कि टाटा ट्रस्ट्स के अंदरूनी मामले ऐसे होने चाहिए कि वे बाहर से किसी को दिखाई न दें और ग्रुप की प्रतिष्ठा को कोई नुकसान न पहुंचे।
दरअसल ट्रस्टी इस बात पर बंटे हुए हैं कि टाटा ट्र्स्ट्स का टाटा संस पर नियंत्रण कैसे होना चाहिए? टाटा संस के बोर्ड में ट्रस्ट की तरफ से कौन-कौन डायरेक्टर बनेंगे? इस बात पर भी सहमति नहीं है कि बोर्ड की बैठकों में हुई चर्चा की कितनी जानकारी बाकी ट्रस्टियों के साथ साझा की जाए। सबसे ज्यादा चिंता इस बात से बढ़ी है कि टाटा संस के नॉमिनी डायरेक्टर विजय सिंह को कैसे हटाया गया। खासकर एक ट्रस्टी का व्यवहार बहुत ही परेशान करने वाला रहा है। अब इसकी जांच हो रही है।
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