वडोदरा: अहमदाबाद प्लेन क्रैश की कई भावुक कर देने वाली कहानियां अब भी सामने आ रही हैं। अब एक लंदन के कपल की दर्दनाक दास्तां सामने आई है। यह कपल जो शादी के सात साल तक माता-पिता नहीं बन पाए तो उन्होंने आईवीएफ कराने की ठानी। विदेशों में आईवीएफ महंगा होता है, इसलिए कपल ने भारत में आकर आईवीएफ प्रॉसिजर कराने का फैसला लिया। सब ठीक था। उनका भ्रूण फर्टाइल होने को तैयार है लेकिन अब वे इस दुनिया में नहीं हैं। यह कहानी अब यहीं खत्म नहीं होती, इसमें अब बड़ा कानूनी पेच फंस गया है क्योंकि यह बहुत ही रेयर केस है।
लंदन का यह कपल आईवीएफ प्रॉसिजर के लिए कई बार यूएस से भारत आया। लंबा प्रॉसेस चला आखिरकार उनका प्रॉसेस सफल रहा। वह भावी माता-पिता बनते, भ्रूण ट्रांसफर के लिए तैयार था। उन्होंने जुलाई में लंदन से आकर भ्रूण ट्रांसफर कराने का फैसला लिया था।
बहुत खुश था कपलउस रोज वे बहुत खुश थे। उन्होंने डॉक्टर को बहुत बार धन्यवाद दिया। वे अपने भविष्य में माता-पिता बनने के सपने को साकार होता देख रहे थे। वे एआई 171 में सवार हुए और दुर्घटना में दंपत्ति की मौत हो गई। भ्रूण गुजरात के एक आईवीएफ केंद्र में सुरक्षित रखा गया है।
कई बार प्रॉसेस हुआ फेलडॉक्टर ने बताया कि सात सालों तक, दंपत्ति का जीवन माता-पिता बनने की आकांक्षाओं के इर्द-गिर्द घूमता रहा। आईवीएफ कई बार विफल रहा और एक प्रयास के दौरान सात हफ़्ते में गर्भपात हो गया। इस दौरान, महिला का एंडोमेट्रियोसिस का इलाज चल रहा था। एक ऐसी स्थिति जो गर्भधारण को मुश्किल बनाती है।
जुलाई में भ्रूण होने था ट्रांसफरफिर भी दंपत्ति ने हार नहीं मानी। इस साल अप्रैल में, डॉक्टरों ने उनकी एक सर्जरी की। उसके बाद भ्रूण को सफलतापूर्वक फ्रीज कर दिया। भ्रूण स्थानांतरण की योजना जुलाई के लिए तय की गई थी। गुजरात में दंपत्ति के पैतृक घर का नवीनीकरण किया गया था, जहां उन्हें लगता था कि नया जीवन आने वाला है। उनकी कहानी न केवल शोकाकुल रिश्तेदारों को, बल्कि एक अजन्मे बच्चे को भी पीछे छोड़ गई है- जो जन्म से पहले ही अनाथ हो गया था, जिसे फ्रीजर में रखा गया था।
बहुत दुर्लभ है मामलाएक आईवीएफ विशेषज्ञ ने कहा कि ऐसा मामला बेहद दुर्लभ है। भ्रूण तो सुरक्षित रखा गया है, लेकिन उसके जैविक माता-पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं। यह बेहद दुखद है जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। आगे क्या होगा, यह सवाल कानूनी और नैतिक जटिलताओं से भरा है।
फंसा कानूनी पेच, अब आगे क्या?भारतीय कानून के तहत अनाथ भ्रूण दान नहीं किए जा सकते और मरणोपरांत सरोगेसी निषिद्ध है। हालांकि, चूंकि दंपति ब्रिटिश नागरिक थे, इसलिए अगला कदम उठाने का एक कानूनी रास्ता है। भारत के राष्ट्रीय सहायक प्रजनन तकनीक (एआरटी) और सरोगेसी बोर्ड की अनुमति से, भ्रूण को विदेश में स्थानांतरित किया जा सकता है, जहां दादा-दादी सरोगेसी का विकल्प चुन सकते हैं। भारत का एआरटी कानून भ्रूण को कम से कम 10 साल तक संरक्षित रखने की अनुमति देता है, जिसे अनुमति मिलने पर 20 साल तक बढ़ाया जा सकता है।
लंदन का यह कपल आईवीएफ प्रॉसिजर के लिए कई बार यूएस से भारत आया। लंबा प्रॉसेस चला आखिरकार उनका प्रॉसेस सफल रहा। वह भावी माता-पिता बनते, भ्रूण ट्रांसफर के लिए तैयार था। उन्होंने जुलाई में लंदन से आकर भ्रूण ट्रांसफर कराने का फैसला लिया था।
बहुत खुश था कपलउस रोज वे बहुत खुश थे। उन्होंने डॉक्टर को बहुत बार धन्यवाद दिया। वे अपने भविष्य में माता-पिता बनने के सपने को साकार होता देख रहे थे। वे एआई 171 में सवार हुए और दुर्घटना में दंपत्ति की मौत हो गई। भ्रूण गुजरात के एक आईवीएफ केंद्र में सुरक्षित रखा गया है।
कई बार प्रॉसेस हुआ फेलडॉक्टर ने बताया कि सात सालों तक, दंपत्ति का जीवन माता-पिता बनने की आकांक्षाओं के इर्द-गिर्द घूमता रहा। आईवीएफ कई बार विफल रहा और एक प्रयास के दौरान सात हफ़्ते में गर्भपात हो गया। इस दौरान, महिला का एंडोमेट्रियोसिस का इलाज चल रहा था। एक ऐसी स्थिति जो गर्भधारण को मुश्किल बनाती है।
जुलाई में भ्रूण होने था ट्रांसफरफिर भी दंपत्ति ने हार नहीं मानी। इस साल अप्रैल में, डॉक्टरों ने उनकी एक सर्जरी की। उसके बाद भ्रूण को सफलतापूर्वक फ्रीज कर दिया। भ्रूण स्थानांतरण की योजना जुलाई के लिए तय की गई थी। गुजरात में दंपत्ति के पैतृक घर का नवीनीकरण किया गया था, जहां उन्हें लगता था कि नया जीवन आने वाला है। उनकी कहानी न केवल शोकाकुल रिश्तेदारों को, बल्कि एक अजन्मे बच्चे को भी पीछे छोड़ गई है- जो जन्म से पहले ही अनाथ हो गया था, जिसे फ्रीजर में रखा गया था।
बहुत दुर्लभ है मामलाएक आईवीएफ विशेषज्ञ ने कहा कि ऐसा मामला बेहद दुर्लभ है। भ्रूण तो सुरक्षित रखा गया है, लेकिन उसके जैविक माता-पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं। यह बेहद दुखद है जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। आगे क्या होगा, यह सवाल कानूनी और नैतिक जटिलताओं से भरा है।
फंसा कानूनी पेच, अब आगे क्या?भारतीय कानून के तहत अनाथ भ्रूण दान नहीं किए जा सकते और मरणोपरांत सरोगेसी निषिद्ध है। हालांकि, चूंकि दंपति ब्रिटिश नागरिक थे, इसलिए अगला कदम उठाने का एक कानूनी रास्ता है। भारत के राष्ट्रीय सहायक प्रजनन तकनीक (एआरटी) और सरोगेसी बोर्ड की अनुमति से, भ्रूण को विदेश में स्थानांतरित किया जा सकता है, जहां दादा-दादी सरोगेसी का विकल्प चुन सकते हैं। भारत का एआरटी कानून भ्रूण को कम से कम 10 साल तक संरक्षित रखने की अनुमति देता है, जिसे अनुमति मिलने पर 20 साल तक बढ़ाया जा सकता है।
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