नई दिल्ली: दुनिया की अर्थव्यवस्था धीमी हो रही है और व्यापार के तरीके बदल रहे हैं। ऐसे में भारत कैसे मोर्चा मार सकता है, इसे लेकर ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) ने अपना प्लान बताया है। जीटीआरआई के मुताबिक भारत को अपनी निर्यात की योजनाओं पर फिर से सोचना होगा। जीटीआरआई के फाउंडर अजय श्रीवास्तव बताते हैं कि भारत को टेक्नोलॉजी, लागत कम करने और देश में ही सामान बनाने पर ध्यान देना चाहिए ताकि लंबे समय तक व्यापार में आगे रह सकें।
अजय श्रीवास्तव ने एएनआई को बताया, 'हमें सामान बनाने की लागत कम करनी होगी, नियमों को आसान बनाना होगा और व्यापार को आसान बनाने की प्रक्रिया को तेज करना होगा। खासकर लॉजिस्टिक्स, कंप्लायंसेस (नियम, कानून, नीति या आदेश का पूरी तरह से पालन करना) और टैक्स के मामले में।'
दो तरह से काम पर फोकसअजय श्रीवास्तव ने कहा, 'हमें दो तरह से काम करना चाहिए। एक तो विदेशी टेक्नोलॉजी के साथ साझेदारी करनी चाहिए और दूसरा, जो टेक्नोलॉजी बाहर से आती है, उसे देश में ही बनाना और समझना सीखना चाहिए। यानी हम खुद भी वो चीजें बना सकें और उन्हें अपने हिसाब से बदल सकें।' उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी और डिजिटल टेक्नोलॉजी जैसे सेक्टरों के बारे में कहा कि जो चीजें भारत में इस्तेमाल होती हैं, उन्हें भारत को बनाना और निर्यात भी करना आना चाहिए।
अमेरिका और यूरोप को लेकर कही यह बातउन्होंने इंटरनेशनल ट्रेड को लेकर भी बात रखी। उन्होंने कहा कि अमेरिका के साथ बातचीत अच्छी चल रही है, भले ही अभी तक कोई पक्की घोषणा नहीं हुई है। भारत चुपचाप उन सेक्टरों के जोखिमों को भी देख रहा है जहां से व्यापार में दिक्कत आ सकती है। इसलिए, भारत अमेरिका से व्यापार को थोड़ा कम करके और देश की अपनी क्षमताएं बढ़ाकर इन दिक्कतों से निपटने की तैयारी कर रहा है।
यूरोप के बारे में अजय श्रीवास्तव ने बताया कि भारत और यूके के बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (एफटीए) पर हस्ताक्षर हो चुके हैं और अब यूके की संसद से मंजूरी मिलनी बाकी है। उन्होंने कहा कि यूरोपियन यूनियन (ईयू) के साथ डील भी लगभग पूरी होने वाली है। ज्यादातर मुद्दों पर बातचीत पूरी हो गई है। उन्होंने यह भी बताया कि इन दोनों समझौतों से नए बाजार खुलेंगे, निवेशकों का भरोसा बढ़ेगा और यूरोप के साथ सप्लाई चेन और मजबूत होगी।
कैसे संभलेगा रुपया?दुनिया के पैसों के लेन-देन के तरीके भी भारत के लिए एक अहम बात है। श्रीवास्तव ने कहा कि जब फेडरल रिजर्व (अमेरिका का सेंट्रल बैंक) ब्याज दरें बढ़ाता है, तो पैसा वापस अमेरिका की ओर जाने लगता है। इससे रुपये पर दबाव पड़ता है, करंट अकाउंट डेफिसिट (जब हम बाहर से ज्यादा सामान खरीदते हैं और कम बेचते हैं) बढ़ जाता है और बाजार में पैसों की कमी हो जाती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि देश की अर्थव्यवस्था को ठीक से संभालने और देश के अंदर व्यापार को बढ़ाने वाले तरीकों पर ध्यान देना बहुत जरूरी होगा ताकि रुपये की कीमत में उतार-चढ़ाव को संभाला जा सके और एक्सपोर्ट भी बढ़ता रहे।
एक्शन की बारीउन्होंने आगे कहा कि भारत को दुनिया के स्थिर होने का इंतजार नहीं करना चाहिए। बल्कि, इस बिना नियमों वाले समय का इस्तेमाल करके उद्योग, खेती और सेवाओं में अपनी क्षमता को फिर से मजबूत करना चाहिए। उन्होंने बताया कि ग्रीन और डिजिटल टेक्नोलॉजी बड़े पैमाने पर सामान बनाना और सुरक्षित सप्लाई चेन में निवेश करना बहुत जरूरी है।
अजय श्रीवास्तव ने एएनआई को बताया, 'हमें सामान बनाने की लागत कम करनी होगी, नियमों को आसान बनाना होगा और व्यापार को आसान बनाने की प्रक्रिया को तेज करना होगा। खासकर लॉजिस्टिक्स, कंप्लायंसेस (नियम, कानून, नीति या आदेश का पूरी तरह से पालन करना) और टैक्स के मामले में।'
दो तरह से काम पर फोकसअजय श्रीवास्तव ने कहा, 'हमें दो तरह से काम करना चाहिए। एक तो विदेशी टेक्नोलॉजी के साथ साझेदारी करनी चाहिए और दूसरा, जो टेक्नोलॉजी बाहर से आती है, उसे देश में ही बनाना और समझना सीखना चाहिए। यानी हम खुद भी वो चीजें बना सकें और उन्हें अपने हिसाब से बदल सकें।' उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी और डिजिटल टेक्नोलॉजी जैसे सेक्टरों के बारे में कहा कि जो चीजें भारत में इस्तेमाल होती हैं, उन्हें भारत को बनाना और निर्यात भी करना आना चाहिए।
अमेरिका और यूरोप को लेकर कही यह बातउन्होंने इंटरनेशनल ट्रेड को लेकर भी बात रखी। उन्होंने कहा कि अमेरिका के साथ बातचीत अच्छी चल रही है, भले ही अभी तक कोई पक्की घोषणा नहीं हुई है। भारत चुपचाप उन सेक्टरों के जोखिमों को भी देख रहा है जहां से व्यापार में दिक्कत आ सकती है। इसलिए, भारत अमेरिका से व्यापार को थोड़ा कम करके और देश की अपनी क्षमताएं बढ़ाकर इन दिक्कतों से निपटने की तैयारी कर रहा है।
यूरोप के बारे में अजय श्रीवास्तव ने बताया कि भारत और यूके के बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (एफटीए) पर हस्ताक्षर हो चुके हैं और अब यूके की संसद से मंजूरी मिलनी बाकी है। उन्होंने कहा कि यूरोपियन यूनियन (ईयू) के साथ डील भी लगभग पूरी होने वाली है। ज्यादातर मुद्दों पर बातचीत पूरी हो गई है। उन्होंने यह भी बताया कि इन दोनों समझौतों से नए बाजार खुलेंगे, निवेशकों का भरोसा बढ़ेगा और यूरोप के साथ सप्लाई चेन और मजबूत होगी।
कैसे संभलेगा रुपया?दुनिया के पैसों के लेन-देन के तरीके भी भारत के लिए एक अहम बात है। श्रीवास्तव ने कहा कि जब फेडरल रिजर्व (अमेरिका का सेंट्रल बैंक) ब्याज दरें बढ़ाता है, तो पैसा वापस अमेरिका की ओर जाने लगता है। इससे रुपये पर दबाव पड़ता है, करंट अकाउंट डेफिसिट (जब हम बाहर से ज्यादा सामान खरीदते हैं और कम बेचते हैं) बढ़ जाता है और बाजार में पैसों की कमी हो जाती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि देश की अर्थव्यवस्था को ठीक से संभालने और देश के अंदर व्यापार को बढ़ाने वाले तरीकों पर ध्यान देना बहुत जरूरी होगा ताकि रुपये की कीमत में उतार-चढ़ाव को संभाला जा सके और एक्सपोर्ट भी बढ़ता रहे।
एक्शन की बारीउन्होंने आगे कहा कि भारत को दुनिया के स्थिर होने का इंतजार नहीं करना चाहिए। बल्कि, इस बिना नियमों वाले समय का इस्तेमाल करके उद्योग, खेती और सेवाओं में अपनी क्षमता को फिर से मजबूत करना चाहिए। उन्होंने बताया कि ग्रीन और डिजिटल टेक्नोलॉजी बड़े पैमाने पर सामान बनाना और सुरक्षित सप्लाई चेन में निवेश करना बहुत जरूरी है।
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