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बाघ की हड्डियों को पीसकर दवा बनाई, बेचा एक-एक अंग, अब भारत के दम पर इस देश में फिर दहाड़ेंगे टाइगर

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उन्होंने बाघ की हड्डियों की पीसकर दवाएं बनाई। अमीरों का शौक ऐसा कि बाघों की खाल निकालकर कालीन बना डाले। इस खूबसूरत जंगली जानवर का ऐसा कोई अंग नहीं था, जिसकी तस्करी न की गई हो। नतीजा..18 साल से कंबोडिया में एक भी टाइगर नहीं दिखा है। जहां कभी इंडोचीन बाघों का राज हुआ करता था, वहां आज सन्नाटा है। अब भारत के दम पर एक बार फिर से इस देश में बाघों की दहाड़ सुनाई दे सकती है।



बाघों को बचाने के लिए भारत के प्रयास को दुनिया ने सराहा है। 75 फीसदी बाघ हमारे ही देश में हैं। अब भारत और कंबोडिया में एक अहम समझौता हुआ है। इसके तहत कंबोडिया से लुप्त हो चुके बाघों को फिर से बसाया जाएगा। भारत से 6 रॉयल बंगाल टाइगर (2 बाघ और 4 बाघिन) कंबोडिया भेजने का फैसला किया है। MOU के मुताबिक तीन साल तक भारत कंबोडिया के कार्डामोम नेशनल पार्क में बाघों की संख्या बढ़ाने में मदद करेगा। अपनी तकनीकी विशेषज्ञता के अलावा आर्थिक मदद भी करेगा।





इंसानी स्वार्थ की बलि चढ़ गए टाइगर कंबोडिया में आखिरी बार 2007 में बाघ देखा गया था। कार्डामोम पार्क 8 लाख हेक्टेयर में फैला है और यहां सन बियन, गिब्बन और पैंगोलिन जैसी दुर्लभ प्रजातियां भी मिलती हैं। लेकिन इंसानी स्वार्थ का खामियाजा बेचारे बाघों को भुगतना पड़ा। पहले जंगल काटकर उनके घर छीन लिए गए। फिर भी मन नहीं भरा तो अंधाधुंध शिकार कर डाला। बाघों को रहने के लिए बहुत ज्यादा जगह चाहिए। लेकिन इंसानी बस्तियों और डेवलपमेंट के नाम पर जंगल छोटे होते चले गए। नतीजा यह हुआ कि बाघों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ गई। उनके जीन कमजोर होते चले गए। इंसानों और बाघों में संघर्ष बढ़ता गया।



बाघों के शरीर के हर अंग की तस्करी बाघों का शिकार भी बड़े पैमाने पर हुआ। बाघ की खाल को अपने घर में रखना कंबोडिया में रईसी की निशानी बन गई। मूंछ से लेकर हड्डियों तक उसके शरीर का कोई हिस्सा ऐसा नहीं बचा, जिसकी तस्करी न की गई हो। इस पर भी मन नहीं भरा तो बाघ की हड्डियां पीसकर 'खास' किस्म की दवा बनाई जाने लगी। नतीजा कंबोडिया से बाघ ही खत्म हो गए।



भारत ने क्यों संभाली जिम्मेदारी बाघों को बचाने में भारत पूरी दुनिया में डंका बजा चुका है। 2006 में महज 1411 बाघ बचे थे, जबकि 2022 में इनकी संख्या 3682 हो गई। 16 साल में 161% बढ़ोतरी। आज दुनिया के 75% बाघ भारत में ही हैं। यही नहीं पन्ना टाइगर रिजर्व में एक समय बाघ खत्म हो गए थे। लेकिन भारत ने यहां सफलतापूर्वक आबादी फिर से बसा दी। मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक से बाघों को कंबोडिया में बसाया जा सकता है। खासतौर से मध्य प्रदेश, जहां सबसे ज्यादा 785 टाइगर हैं। कंबोडिया में बाघ फिर से बसाने की परियोजना का जिम्मा इसलिए भी भारत ने लिया है क्योंकि 2022 में चीतों को बसाया जा चुका है।



बाघों को बसाना आसान काम नहीं बाघों को बसाना आसान काम कतई नहीं है। अन्य जानवरों की तुलना में उन्हें स्थायी क्षेत्र और भरपूर शिकार की जरूरत होती है। हालांकि कंबोडिया में बाघों को बसाने का फैसला अचानक ही नहीं लिया गया है बल्कि पिछले 10 साल से इसे लेकर काम चल रहा था। इस इलाके को फिर से हराभरा करने की योजना है। शिकार को रोकने के लिए निगरानी बढ़ा दी गई है। कंबोडिया टाइगर एक्शन प्लान में शिकार के लिए जानवरों की आबादी को बढ़ाना, बाघों के आवास को सुरक्षित करना और खतरों पर नजर रखने के लिए प्रणाली विकसित करना शामिल है।

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