नई दिल्ली, 14 अप्रैल . अखिल भारतीय पसमान्दा मुस्लिम मंच के जरिए पसमान्दा मुस्लिम संवाद में एक राष्ट्र, एक चुनाव विषय पर इंडिया इस्लामिक कल्चर सेंटर में एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय महामंत्री सुनील बंसल ने कहा कि भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए एक राष्ट्र – एक चुनाव बेहद जरूरी है. भारतीय जनता पार्टी की सरकार एक राष्ट्र, एक चुनाव की वकालत इसलिए करती है कि बार-बार चुनाव होने से देश की गति बाधित होती है. एक राष्ट्र-एक चुनाव प्रणाली भारतीय लोकतंत्र के लिए हितकारी साबित होने के साथ-साथ भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए बेहद जरूरी है.
भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री ने आगे कहा कि वन नेशन, वन इलेक्शन भारत के लिए स्पीड ब्रेकर हटाने जैसा है. उन्होंने कहा कि यदि यह व्यवस्था लागू होती है, तो 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम होगा. बंसल ने आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि वर्तमान में भारत में एक लोकसभा चुनाव पर करीब 1,35,000 करोड़ रुपये खर्च होते हैं, जबकि पूरे चुनावी चक्र में यह राशि 4-5 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच जाती है. उन्होंने कहा कि यदि विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ हों, तो खर्च में भारी कटौती की जा सकती है. एक वोट डालने पर सरकार 1400 रुपये खर्च करती है. जब हर साल कोई न कोई चुनाव होता है, तो यह खर्च कई गुना बढ़ जाता है. राजनीतिक पार्टियों के अपने चुनावी खर्चे अलग होते हैं, जिससे संसाधनों पर और भी अधिक दबाव पड़ता है.
सुनील बंसल ने कहा कि बार-बार चुनाव होने से मंत्री, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री लगातार चुनावी अभियानों में व्यस्त रहते हैं, जिससे योजनाएं जमीनी स्तर तक सही ढंग से नहीं पहुंच पातीं. इस बार के लोकसभा चुनाव में 01 करोड़ से अधिक लोगों की ड्यूटी लगी और इसमें 3 महीने का समय गया. यह प्रशासनिक स्तर पर एक बड़ी चुनौती बन गया है. भाजपा नेता ने तर्क दिया कि यदि देश में एक साथ चुनाव होते हैं, तो सरकारें अपने पूरे कार्यकाल में ठोस नीतिगत फैसले ले सकेंगी. बार-बार चुनाव होने से कई बार कठोर निर्णय लेने की स्थिति नहीं बन पाती.
इस अवसर पर
अखिल भारतीय पसमान्दा मुस्लिम मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष जावेद मलिक ने कहा कि एक राष्ट्र, एक चुनाव प्रणाली से समय और संसाधनों की बचत होगी. यह भारत के विकास के लिए आवश्यक है.
बार-बार चुनाव होने से जिन संसाधनों और धन का प्रयोग व्यर्थ होता है, उनकी बचत होगी. उन संसाधनों का प्रयोग भारत को विकसित राष्ट्र बनने के लिए होगा, जिससे विश्व के सामने भारत बहुत जल्द एक विकसित राष्ट्र बनकर उभरेगा, इसलिए चुनाव प्रक्रिया में सुधार की बहुत जरूरत है.
जावेद मलिक ने आगे बताया कि एक साथ चुनाव कराने की अवधारणा भारत में नयी नहीं है. संविधान को अंगीकार किए जाने के बाद, 1951 से 1967 तक लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ आयोजित किए गए थे. लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के पहले आम चुनाव 1951-52 में एक साथ आयोजित किए गए थे. यह परंपरा इसके बाद 1957, 1962 और 1967 के तीन आम चुनावों के लिए भी जारी रही.
/मोहम्मद ओवैस
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/ मोहम्मद शहजाद
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