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कीटनाशकों का प्रयोग तभी करें जब वास्तव में ज़रूरी हो : डॉ. जे.के. लाढा

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—कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय के एडजंक्ट प्रोफेसर ने कृषि नवाचार पर दिया जोर

—आइसार्क में भ्रमण कर संस्थान के वैज्ञानिकों संग किया संवाद

वाराणसी,17 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) . अंतर्राष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान के वाराणसी स्थित दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र में शुक्रवार को कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के एडजंक्ट प्रोफेसर डॉ. जे.के. लाढा और उषा लाढा ने भ्रमण किया. कृषि अनुसंधान और नवाचार को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से केन्द्र में आए प्रोफेसर डॉ. जे.के. लाढा ने संस्थान के वैज्ञानिको के साथ रणनीतिक संवाद कार्यक्रम में भी हिस्सा लिया.

संवाद में धान आधारित कृषि प्रणालियों, पुनर्योजी कृषि और जलवायु-सहिष्णु तकनीकों पर वर्तमान प्रयासों और भविष्य की संभावनाओं पर चर्चा हुई. इस दौरान डॉ. लाढा ने कहा कि जब हम कृषि अनुसंधान और तकनीकी विस्तार की बात करते हैं, तो एक बात हमेशा ध्यान में रखनी चाहिए – रासायनिक कीटनाशको का विवेकपूर्ण व न्यायोचित उपयोग हो. कीटनाशकों का प्रयोग तभी करें जब वास्तव में ज़रूरी हो. इनका अधिक उपयोग न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि फसल की दीर्घकालिक स्थिरता को भी प्रभावित करता है. उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि इरी जैसे अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों को राष्ट्रीय अनुसंधान प्रणालियों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं, बल्कि सहयोग पर ज़ोर देना चाहिए. हमारा काम है उन्हें सशक्त बनाना—क्षमता निर्माण, वैज्ञानिक मार्गदर्शन और संयुक्त अनुसंधान के माध्यम से. बड़े पैमाने पर तकनीकी विस्तार और प्रसार का कार्य हमारे राष्ट्रीय तंत्र – जैसे कि कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से होना चाहिए. हमें उनके साथ खड़ा होना चाहिए, उनके स्थान पर नहीं. प्रतिनिधिमंडल ने आइसार्क की प्रमुख प्रयोगशालाओं का अवलोकन किया, जिनमें जीआईएस लैब, क्रॉप बायोलॉजी लैब, एडटेक स्टूडियो, प्लांट एंड सॉयल लैब और सर्वा लैब शामिल हैं. इस दौरान उन्होंने संस्थान की अग्रणी शोध गतिविधियों और डिजिटल नवाचारों की जानकारी प्राप्त की. डॉ. लाढा ने आइसार्क के प्रायोगिक क्षेत्र का भी दौरा किया, जहाँ उन्होंने स्पीडब्रीड सुविधा, मशीनीकरण हब, धान की सीधी बुवाई, ग्रीनहाउस गैस न्यूनीकरण प्लॉट्स और पुनर्योजी कृषि परीक्षणों पर किए गए फील्ड डेमोंस्ट्रेशन का अवलोकन किया.

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(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी

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