बीजिंग, 07 अगस्त (Udaipur Kiran) । चीन ने अपनी सीमा के अंदर भारत से मात्र 30 किलोमीटर दूर यारलुंग जंग्बो नदी पर बांध बनाना शुरू कर दिया है। यारलुंग जंग्बो नदी को भारत में ब्रह्मपुत्र के नाम से जाना जाता है। यारलुंग जंग्बो बांध परियोजना का निर्माण पूरा होने के बाद चीन अंतरराष्ट्रीय सीमा पार के जल प्रवाह पर नियंत्रण करने में पूरी तरह सक्षम हो जाएगा। जियोपॉलिटिकल मॉनिटर में पांच अगस्त को प्रकाशित रिपोर्ट में चीन की जल महत्वाकांक्षा पर चर्चा की गई है।
जियोपॉलिटिकल मॉनिटर की रिपोर्ट के अनुसार, यह परियोजना चीन के एक ऐसे जल प्रभुत्व के रूप में उभरेगी जो बीजिंग के रणनीतिक लाभ के लिए कई अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के पार जल प्रवाह में हेरफेर करने में सक्षम होगी। हालांकि बीजिंग इसे अपनी नवीकरणीय ऊर्जा परिवर्तन और तिब्बत विकास योजना के हिस्से के रूप में प्रचारित कर रहा है। सच यह है कि यह परियोजना उसके सुनियोजित भू-राजनीतिक आधिपत्य की ओर इशारा करती है। इसका विस्तार ऊर्जा सुरक्षा संबंधी विचार से कहीं आगे तक है।
रिपोर्ट के अनुसार, चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग इस परियोजना का औपचारिक उद्घाटन कर पूरे दक्षिण एशिया में जल को एक रणनीतिक हथियार में बदलने का संकेत दे चुके हैं। यह परियोजना थ्री गॉर्जेस बांध को पीछे छोड़ते हुए लगभग 70 गीगावाट बिजली का उत्पादन करेगी। चीन ने इस परियोजना पर काम क्षेत्रीय तनाव के दौर में शुरू किया है। चीन वैसे भी तिब्बती पठार पर बसे समुदायों और साथ क्षेत्र के विशाल जल संसाधनों पर नियंत्रण मजबूत करने का दुस्साहस करता रहता है।
जियोपॉलिटिकल मॉनिटर के अनुसार, चीन के इंजीनियर पांच चरणबद्ध विद्युत उत्पादन सुविधा की विस्तृत शृंखला के माध्यम से नदी के प्रवाह को को मोड़ने के लिए नामचा बरवा पर्वतमाला के नीचे 20 किलोमीटर लंबे कई मार्गों पर खुदाई का प्रस्ताव किया है। चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने उल्लेख किया है, यह सीधा करने का कार्य मानव इतिहास की सबसे महत्वाकांक्षी पर्वतीय इंजीनियरिंग परियोजनाओं में से एक है। इस कार्य की अनुमानित लागत 1.2 ट्रिलियन युआन (167 बिलियन डॉलर ) है। रिपोर्ट के अनुसार, यह परियोजना राष्ट्रपति शी जिनपिंग की प्राथमिकता में है। बीजिंग का लक्ष्य तिब्बत की जलविद्युत क्षमता का दोहन करके चीन के व्यस्त पूर्वी महानगरों को बिजली की आपूर्ति करना है। तिब्बत चीन की कुल जलविद्युत क्षमता में लगभग एक-तिहाई योगदान देता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बांध परियोजना पर डोंगफैंग इलेक्ट्रिक, सियुआन इलेक्ट्रिक, पिंगगाओ ग्रुप और एक्सजे इलेक्ट्रिक जैसी कंपनियों ने निवेश की इच्छा जताई है। आर्थिक विश्लेषकों का पूर्वानुमान है कि यह परियोजना चीन की जीडीपी वृद्धि को 0.1 प्रतिशत अंक तक बढ़ा सकती है। चीन इस परियोजना के लिए राज्य-नियंत्रित निगम के रूप में चाइना याजियांग ग्रुप का गठन किया है। 2000 के बाद से बीजिंग ने तिब्बत में कम से कम 193 जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण किया है। इनमें से लगभग 80 प्रतिशत को बड़ी या विशाल परियोजनाओं के रूप में वर्गीकृत किया गया है। 60 प्रतिशत से अधिक परियोजनाएं प्रारंभिक चरणों में हैं। यदि यह पूरी होती हैं तो 12 लाख से अधिक निवासियों को विस्थापित होना पड़ेगा। अनगिनत पवित्र स्थल नष्ट हो जाएंगे। इस विकास रणनीति की मानवीय कीमत तिब्बती समुदायों के लिए बहुत भारी रही है। तिब्बती सांस्कृतिक पहचान का निरंतर विनाश हो रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार, चीन यारलुंग जंग्बो बांध परियोजना को हर हाल में पूरा करना चाहेगा। वह इससे पहले 2024 में कामटोक बांध परियोजना का विरोध करने वाले प्रदर्शनकारियों से निपट चुका है। बीजिंग के बांध निर्माण की घोषणा का समय भारत के पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि को निलंबित करने के कुछ महीनों बाद का रखना उसके क्षेत्रीय निहितार्थों को और गहरा करता है। चीन का निर्णय दक्षिण एशिया में जल कूटनीति की उभरती उसकी गतिशीलता का भी प्रतीक है। बांध का स्थान इसके भू-रणनीतिक महत्व को दर्शाता है। दुनिया की सबसे गहरी और विस्तृत घाटी प्रणाली के भीतर भारत के साथ चीन की विवादित सीमा से केवल 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह बांध कई भू-राजनीतिक भ्रंश रेखाओं के संगम पर स्थित है। यारलुंग जंगबो नदी नामचा बरवा पर्वत के चारों ओर घूमती है जहां यह 50 किलोमीटर की दूरी में काफी ऊंचाई पर उतरती है।
चीन के इस बांध से करोड़ों लोग प्रभावित होंगे यारलुंग जंगबो नदी भारत में प्रवेश करते ही ब्रह्मपुत्र में परिवर्तित हो जाती है। यह असम, अरुणाचल प्रदेश और अन्य पूर्वोत्तर प्रांतों में लगभग 13 करोड़ निवासियों और 60 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि को पोषण प्रदान करती है। बांग्लादेश में यह जलमार्ग 55 प्रतिशत सिंचाई आवश्यकताओं की पूर्ति करता है और साथ ही दो लाख मछुआरों के लिए महत्वपूर्ण मत्स्य पालन को भी बनाए रखता है। अकादमिक अध्ययन हिमालय जैसे भूकंपीय रूप से अस्थिर क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर बांध परियोजनाओं से उत्पन्न पर्यावरणीय खतरों पर आगाह करता है। इस परियोजना का पूरा करने का लक्ष्य 2030 तक रखा गया है।
शोध से पता चला है कि ऊपरी मेकांग नदी पर चीन के 11 विशाल बांधों ने पिछले दो दशकों में निचले इलाकों में सूखे के संकट को बढ़ा दिया है। इससे थाईलैंड, वियतनाम और कंबोडिया तक पानी की पहुंच सीमित हो गई है। साथ ही पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुंचा है और नदी के किनारों पर कटाव हुआ है। प्राकृतिक प्रवाह की अनदेखी करते हुए अपनी बिजली की जरूरतों को पूरा करने के लिए बांधों का संचालन करने का चीन का तरीका बताता है कि बांग्लादेश और भारत के लिए भी ऐसी ही चुनौतियां आ सकती हैं। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चीन का जल-आधिपत्य मॉडल मानवता के सबसे आवश्यक संसाधन पर भविष्य के संघर्ष की नींव रखता प्रतीत हो रहा है।
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(Udaipur Kiran) / मुकुंद
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